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मेरी 'अंकल' हैट के साथ और उसके बिना

जैसे-जैसे भारत के निवेशक युवा हो रहे हैं, कुछ कालातीत ज्ञान नई वास्तविकताओं के साथ मिल रहा है.

भारत के युवा निवेशक: टेक्नोलॉजी, सीखने और धैर्य की नई कहानीAI-generated image

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पिछले हफ़्ते, मुंबई में हुए एक कार्यक्रम में, नेशनल स्टॉक एक्सचेंज के सीईओ ने कुछ ऐसे आंकड़े शेयर किए, जिन्होंने मेरा ध्यान खींचा. भारतीय निवेशकों की औसत उम्र घटकर 32 साल हो गई है. एक मिनट के लिए इस पर सोचिए. भारत के सबसे बड़े एक्सचेंज में सभी निवेशकों में से आधे 32 साल से कम उम्र के हैं. जब मैंने इस काम में शुरुआत की थी, तो आम निवेशक अपनी 45 साल के आस-पास का शख़्स होता था, जो रिटायरमेंट और बच्चों की पढ़ाई को लेकर चिंतित रहता था. आज, ऐसे निवेशक ज़्यादा हैं जो स्मार्टफ़ोन के साथ बड़े हुए हैं और क्रिप्टोकरेंसी को एक पुरानी चीज़ समझते हैं.

उम्र के प्रोफ़ाइल में हुए ये नाटकीय बदलाव हमें भारत में निवेश के बदले हुए तरीक़ों को लेकर गहरी बात बताता है. NSE के डेटा से पता चलता है कि युवा भारतीयों ने यूनीक निवेशकों की संख्या को लगभग 11 करोड़ तक बढ़ाने में मदद की है, जिनके अकाउंट भारत के 99.84% पिन कोड में फैले हुए हैं. ये पूंजी बानाने का एक आश्चर्यजनक लोकतंत्रीकरण है, जिसे टेक्नोलॉजी ने संभव बनाया है और इसे चलाने वाली ताक़त नया नज़रिया रखती है.

लेकिन यहां जो बात मुझे असल में दिलचस्प लगी वो ये है: अकेले 2024 में, घरेलू निवेशकों ने अपनी संपत्ति में लगभग ₹13.2 लाख करोड़ बढ़ते हुए देखे. पिछले पांच साल में रिटेल निवेशकों ने सीधे निवेश से और म्यूचुअल फ़ंड के ज़रिए अपनी संपत्ति में ₹40 लाख करोड़ से ज़्यादा जोड़े. ये सिर्फ़ आंकड़े नहीं हैं; ये सपनों को फ़ाइनांस किए जाने, भविष्य सुरक्षित किए जाने और सबसे अहम बात, पैसों को लेकर युवा भारत की सोच में आए बुनियादी बदलाव को दिखाता है.

हालांकि, यहां मुझे अपनी 'अंकल' वाली हैट पहनकर कुछ चिंताएं आपसे बांटने की ज़रूरत है. जिस आसानी से कोई अब निवेश कर सकता है - फ़ोन पर थोड़े से टैप के साथ - वो एक आशीर्वाद और संभावित अभिशाप दोनों है. जिस तकनीक ने निवेश को लोकतांत्रिक बनाया है, उसी ने झुंड के पीछे-पीछे चलने को भी ख़तरनाक तरीक़े से आसान कर दिया है. मैं उन युवा निवेशकों की गिनती भूल गया हूं, जिनसे मैं मिला हूं, जो फ़ाइनांस की दुनिया के अपने पसंदीदा व्यक्ति की बात दोहरा सकते हैं, लेकिन कभी भी कंपनी की सालाना रिपोर्ट या, भगवान न करे, म्यूचुअल फ़ंड फ़ैक्ट शीट भी खोल कर नहीं देखी है.

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एक समय था जब हम सभी के पास एक 'दोस्त' था जो हमें अपने 'अचूक' स्टॉक टिप में निवेश करने के लिए परेशान किया करता था. आज, उस दोस्त की जगह सोशल मीडिया एक्सपर्ट्स की एक फ़ौज ने ले ली है, जिनमें से हरेक के पास पैसों के लिए अपना "गारंटीशुदा" रास्ता है. प्लेटफ़ॉर्म ज़रूर बदल सकते हैं, लेकिन बुनियादी सिद्धांत नहीं बदले हैं. अच्छा निवेश रुझानों का पीछा करना नहीं है; ये वैल्यू को समझने की बात है. फिर भी, जो बात उत्साह बढ़ाती है वो ये है कि ये पीढ़ी सीखने के कैसे तरीक़े अपनाती है. वे तुरत-फुरत वाले ट्रेड्स से शुरुआत तो करते हैं, लेकिन उनमें से बहुत से कंपाउंडिंग की ताक़त समझते हैं. हां, वे गलतियां करते हैं - जैसी हमने की - लेकिन जब मैं अपने अंकल वाली हैट उतारता हूं, तो पाता हूं कि वे अपनी ग़लतियों से बहुत जल्दी सीखते हैं.

NSE की यात्रा इस विकास को दिखाती है. 1994 में भारत का पहला स्क्रीन वाला ट्रेडिंग प्लेटफ़ॉर्म होने से लेकर अब व्यस्त दिनों में क़रीब 2000 करोड़ ऑर्डर प्रोसेस करने तक, ये अपने निवेशकों के बढ़ने के साथ-साथ बढ़ा है. T+5 की सेटलमेंट साइकिल से T+1 (और अब कुछ मामलों में T+0 भी) हो जाना उस रफ़्तार को दिखाता है जिस से युवा भारत आगे बढ़ना चाहता है.

लेकिन यहां युवा निवेशकों को मेरी सलाह है: जबकि टेक्नोलॉजी ने निवेश को तेज़ और ज़्यादा आसान बना दिया है, अच्छे निवेश के लिए अभी भी धीरज की ज़रूरत है. वही NSE डेटा दिखाता है कि सबसे सफल निवेशक, उम्र की परवाह किए बिना, अलग-अलग मार्केट साइकिल के दौरान अपने निवेश में बने रहते हैं. आज के टेक्निकल टूल ग़ज़ब के हैं, लेकिन उन्हें आपकी निवेश की स्ट्रैटी के काम आना चाहिए, उसे परिभाषित नहीं करना चाहिए.

इसे पढ़ने वाले युवा निवेशक के लिए: आप एक ऐतिहास का हिस्सा हैं. आज भारत के कैपिटल मार्केट्स अमेरिका, चीन और जापान के बाद दुनिया में चौथे सबसे बड़े हो गए हैं. आप इस विकास की कहानी में न केवल एक दर्शक नहीं बल्कि एक सक्रिय खिलाड़ी के तौर पर हिस्सा ले रहे हैं. मार्केट आपकी गति के मुताबिक़ विकसित हुए हैं, लेकिन याद रखें कि पूंजी बढ़ाना अभी भी धीरज, रिसर्च और अनुशासित निवेश के पुराने नियमों पर होता है.

आने वाला कल आपका है, लेकिन कभी अपने माता-पिता से उनकी निवेश यात्रा के बारे में पूछने के लिए कुछ समय ज़रूर निकालिए. आपको जानकर अचरज होगा कि जहां टूल्स नाटकीय तरीक़े से बदले हैं, वहीं उनके सिद्धांत - जब वो काम करते थे - आज भी आश्चर्यजनक रूप से प्रासंगिक बने हुए हैं. अच्छा निवेश, अच्छी सलाह की तरह, कभी भी फ़ैशन से बाहर नहीं होता.

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