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SRF और नवीन फ़्लोरीन: क्या ये दो भारतीय कंपनियां ला सकती हैं 'क्रांति'?

रेफ़्रिजरेंट इंडस्ट्री एक बड़े बदलाव के कगार पर तो नहीं

SRF और नवीन फ्लोरीन: इन दोनों शेयरों में क्यों दिख रही है तेज़ी? | स्टॉक मार्केट अलर्टAI-generated image

हाल में, अमेरिकी डिस्ट्रीब्यूटर IGAS USA ने R32 रेफ़्रिजेंट गैस की क़ीमत 200 फ़ीसदी बढ़ा दी और उसके बाद SRF और नवीन फ़्लोरीन के शेयरों में तेज़ उछाल (क्रमशः 16% और 14%) आ गया. R32 रेफ़्रिजरेंट गैस एक हाइड्रोफ़्लोरोकार्बन (HFC) है जिसका इस्तेमाल एयर कंडीशनिंग और रेफ़्रिजरेशन में किया जाता है. ये गैस कम ग्लोबल वार्मिंग पोटेंशियल (GWP) की ख़ूबी और ज़्यादा ऊर्जा देने के लिए जानी जाती है.

इस सेक्टर में दिलचस्पी बढ़ाते हुए एक छोटी भारतीय कंपनी स्टैलियन इंडिया ने अपना IPO जारी किया. SRF का प्रॉफ़िट लगभग आधा होने और नवीन फ्लोरीन के प्रॉफ़िट में भारी गिरावट (दोनों को FY23 से) जैसी हाल की चुनौतियों के बावजूद, इन कंपनियों के शेयर तुलनात्मक रूप से लचीले बने हुए हैं, जो अपने रिकॉर्ड हाई से केवल 10 फ़ीसदी और 24 फ़ीसदी नीचे हैं.

क्या रेफ़्रिजेंट इंडस्ट्री बड़े बदलाव की कगार पर है, या ये घटनाएं केवल अस्थायी असर डालने वाले हैं?

रेफ़्रिजेंट इंडस्ट्री में बदलाव के तीन बड़े फ़ैक्टर

पर्यावरण से जुड़े रेग्युलेशन, ट्रेड के स्वरूप और उभरते बाज़ारों में मज़बूत घरेलू ग्रोथ के दम पर रेफ़्रिजेंट इंडस्ट्री एक बड़े बदलाव से गुज़र रहा है. तीन बड़े ट्रेंड्स इसे नया रूप दे रहे हैं और इंडस्ट्री से जुड़ी कंपनियों के लिए मौक़े बन रहे हैं.

1. कम-GWP रेफ़्रिजेंट की ओर रुख

रेफ़्रिजेंट इंडस्ट्री पिछले कई दशकों में विकसित हुआ है, जो पर्यावरण को नुक़सान देने वाली गैसों से हटकर ज़्यादा टिकाऊ विकल्पों की ओर बढ़ रहा है.

  • शुरुआती दिन: क्लोरोफ्लोरोकार्बन (CFC) के चलते ओज़ोन को होने वाले नुक़सान के चलते उसे प्रतिबंधित कर दिया गया था, जो कभी व्यापक रूप से इस्तेमाल किए जाते थे. उनकी जगह R22 जैसे हाइड्रोक्लोरोफ्लोरोकार्बन (HCFC) ने ले ली, जिन्हें बाद में उनकी ऊंची ग्लोबल वार्मिंग क्षमता के कारण चरणबद्ध तरीक़े से हटा दिया गया.
  • आधुनिक समाधान: हाल के वर्षों में R410A और R32 जैसे हाइड्रोफ्लोरोकार्बन (HFC) का बोलबाला रहा है. हाल ही में, हाइड्रोफ्लोरोलेफिन (HFO) अगली पीढ़ी के रेफ़्रिजेंट के रूप में उभरे हैं, जिनमें ग्लोबल वार्मिंग की आशंकाएं काफ़ी कम हैं और ऊर्जा दक्षता अधिक है.

इनमें से, R32 एक बेहतरीन विकल्प बन गया है. ये ऑफ़र करता है:

  • R410A जैसे पुराने HFC की तुलना में कम GWP
  • ऊंची ऊर्जा दक्षता, HVAC सिस्टम में बिजली की खपत को कम करना
  • मौजूदा सिस्टम के अनुकूल, जो इसे कम लागत वाला विकल्प बनाता है

उदाहरण के लिए, अमेरिका स्थित केमर्स (फ्लोरोकेमिकल्स और स्पेशलिटी गैसों के बाज़ार में 16 फ़ीसदी की हिस्सेदारी रखती है) ने R32 की बिक्री में दो अंकों की बढ़ोतरी देखी है, इसके साथ ही, ऑप्टियन रेफ़्रिजेंट्स के लिए EBITDA मार्जिन 30-35 फ़ीसदी तक पहुंच गया है.

भले ही, विकसित बाज़ार तेज़ी से R32 और HFO को अपना रहे हैं, लेकिन भारत जैसी उभरती अर्थव्यवस्थाएं अभी भी लागत से जुड़ी बाधाओं और रेग्युलेटर से जुड़े बदलावों में सुस्ती के कारण R22 जैसे HCFC पर निर्भर हैं. विडंबना ये है कि R22 का वैश्विक उत्पादन घटने के साथ, सीमित आपूर्ति ने कीमतों को बढ़ा दिया है. इससे विकासशील देशों में लगातार मांग का पता चलता है.

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2. ट्रेड की स्थिति और डंपिंग रोधी शुल्क

इस ट्रेड से जुड़ी नीतियां रेफ़्रिजेंट इंडस्ट्री को आकार देने में अहम भूमिका निभा रही हैं.

  • वर्ष 2021 में, अमेरिका ने प्राइसिंग के अनुचित तौर-तरीक़ों पर अंकुश लगाने के लिए चीन से आयातित R32 पर 161-221 फ़ीसदी का डंपिंग रोधी शुल्क लगाया. इस कदम से वैश्विक क़ीमतें स्थिर हुईं और SRF तथा नवीन फ्लोरीन जैसी घरेलू कंपनियों को फ़ायदा हुआ.
  • भारत ने भी इसी तरह के शुल्क लागू किए हैं, जिससे स्थानीय कंपनियों को चीनी डंपिंग के कारण होने वाली प्राइसिंग से जुड़े दबावों से बचाया जा सके.

हालांकि, चुनौतियां बनी हुई हैं. SRF की FY25 की दूसरी तिमाही की अर्निंग्स कॉल के दौरान, प्रबंधन ने मध्य पूर्व और मैक्सिको जैसे अप्रत्यक्ष रूटों से अमेरिका में प्रवेश करने वाले चीनी रेफ़्रिजेंट के बारे में चिंताओं को उजागर किया. भले ही, ऐसी खामियां प्राइसिंग में स्थिरता को बाधित कर सकती हैं, लेकिन, अमेरिका ऐतिहासिक रूप से ऐसी समस्याओं का समाधान निकालने में सतर्क रहा है, जैसा कि चीनी आपूर्ति को पुनर्निर्देशित (रीडायरेक्ट) करने के संदेह में भारतीय फ़र्मों पर लगाए गए शुल्कों से स्पष्ट होता है.

3. भारत की घरेलू ग्रोथ की कहानी

स्टैलियन इंडिया IPO के प्रॉस्पेक्टस के अनुसार, भारत का फ्लोरोकेमिकल बाज़ार तेज़ी से बढ़ रहा है, जिसकी अनुमानित सालाना ग्रोथ 16-17 फ़ीसदी है. इस ग्रोथ की वजह कई फ़ैक्टर हैं, जिनमें एयर कंडीशनर की बढ़ती पहुंच, ऑटोमोबाइल की बिक्री में बढ़ोतरी और घरेलू मैन्युफैक्चरिंग की क्षमताओं का विस्तार शामिल है.

SRF और नवीन फ्लोरीन जैसी प्रमुख कंपनियां इस ग्रोथ का फ़ायदा उठा रही हैं.

  • SRF ने FY25 की पहली तिमाही की अर्निंग्स कॉल में घरेलू स्तर पर वॉल्यूम में दमदार ग्रोथ की जानकारी दी, जिसमें कुछ सेगमेंट्स में 60-70 फ़ीसदी की ग्रोथ हुई.
  • नवीन फ्लोरीन के हाई परफ़ॉर्मेंस प्रोडक्ट्स (HPP) सेगमेंट में FY25 की दूसरी तिमाही में सालाना आधार पर 23 फ़ीसदी की ग्रोथ हुई, जिसे घरेलू मांग में बढ़ोतरी से सपोर्ट हासिल हुआ.

एक्सपोर्ट मार्केट में अस्थिरता के विपरीत, घरेलू रेफ़्रिजेंट की क़ीमतें स्थिर बनी हुई हैं, जिसकी वजह मज़बूत मांग और एंटी डंपिंग उपायों के कारण प्रतिस्पर्धा में कमी है.

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किस पर दांव लगाना चाहिए?

फ्लोरोकेमिकल बाज़ार में उतरने से जुड़ी कई बाधाएं हैं, जिनमें पूंजी से जुड़ी अहम ज़रूरतें, तकनीकी विशेषज्ञता और सख्त रेग्युलेट्री अनुपालन शामिल हैं. ये घरेलू और वैश्विक स्तर पर अत्यधिक केंद्रित बाज़ार है, जिसमें चार से पांच कंपनियों का इंडस्ट्री पर दबदबा है. भारत में, प्रमुख रूप से SRF, नवीन फ्लोरीन, गुजरात फ्लोरोकेमिकल्स और स्टैलियन इंडिया शामिल हैं. हालांकि, उनकी स्थिति और रणनीति काफ़ी अलग हैं.

आंकड़ों में कितनी खरीं हैं फ़्लोरो कंपनियां

इन 4 कंपनियों की भारत की फ़्लोरोकेमिकल्स और स्पेशियलिटी गैस इंडस्ट्री में 78 फ़ीसदी हिस्सेदारी है

SRF नवीन फ़्लोरीन GFL स्टैलायन इंडिया*
मार्केट कैप (करोड़ ₹) 77,785.0 18,754.0 41,851.0 714.0
P/E 68.9 86.6 102.0 48.3
2 साल की रेवेन्यू ग्रोथ (% सालाना) 2.8 19.2 4.1 12.0
2 साल की ऑपरेटिंग प्रॉफ़िट ग्रोथ (% सालाना) -14.0 -0.8 -19.2 -14.3
3 साल का मीडियन ROCE (%) 22.4 19.1 20.7 15.8
3 साल का कुल FCF-टू-रेवेन्यू (%) 0.5 -22.3 -1.6 -110.5
फ़ाइनेंशियल ईयर 22-24 के लिए रेवेन्यू में ग्रोथ, ऑपरेटिंग प्रॉफ़िट ग्रोथ और औसत ROCE की कैलकुलेशन की गई है.
*स्टैलियन इंडिया का मार्केट कैप और P/E इसके IPO के ऊपरी प्राइस बैंड पर आधारित है.

SRF (स्टॉक रेटिंग - 5 में से 2) और नवीन फ्लोरीन (स्टॉक रेटिंग - 5 में से 3)

इन दोनों कंपनियों का भारत के फ्लोरोकेमिकल बाज़ार पर दबदबा है और कम-GWP रेफ़्रिजेंट्स में चल रहे बदलाव से लाभ उठाने के लिए अच्छी स्थिति में हैं. उनके फ्लोरोकेमिकल बिज़नस उनके रेवेन्यू में बड़ा योगदान करते हैं:

  • SRF के लिए, फ्लोरोकेमिकल्स सहित पूरा केमिकल बिज़नस कुल रेवेन्यू में 48-50 फ़ीसदी योगदान देता है.
  • नवीन फ्लोरीन के लिए, हाई परफ़ॉर्मेंस प्रोडक्ट्स (HPP) सेगमेंट उसके कुल रेवेन्यू में लगभग 40 फ़ीसदी योगदान देता है, जिसमें रेफ़्रिजेंट्स शामिल हैं.

दोनों कंपनियों ने अपनी रेफ़्रिजेंट क्षमता का विस्तार करने में पर्याप्त पूंजी निवेश किया है. SRF ने अपने फ्लोरोकेमिकल बिज़नस के लिए फ़ाइनेंशियल ईयर 24 में ₹1,200 करोड़ से ज़्यादा का एलोकेशन किया है, जबकि नवीन फ्लोरीन ने अपनी R32 क्षमता का विस्तार करने के लिए ₹365 करोड़ का निवेश किया है. इसके अलावा, दोनों कंपनियों को हाइड्रोफ्लोरिक एसिड जैसे महत्वपूर्ण इनपुट हासिल करने से बैकवर्ड इंटीग्रेशन का लाभ मिलता है, जिससे लागत में कमी आती है और प्रॉफ़िटेबिलिटी बढ़ती है. बड़े पैमाने पर काम करने और तकनीकी क्षमताओं के चलते उनकी स्थिति को और मज़बूती मिलती है.

इक्विरस कैपिटल की एक ब्रोकरेज रिपोर्ट इस बारे में बताती है कि ये कंपनियां विस्तार करने के लिए क्यों उत्सुक हैं. इसका अनुमान है कि R32 की क़ीमतों में $1 प्रति किलोग्राम की बढ़ोतरी से SRF के EBITDA में ₹260 करोड़ और नवीन फ्लोरीन के EBITDA में ₹77 करोड़ जुड़ सकते हैं!

गुजरात फ्लोरोकेमिकल्स (GFL; स्टॉक रेटिंग - 5 में से 3)

जहां, GFL फ्लोरोकेमिकल्स में एक बड़ी कंपनी बनी हुई है (जिसने FY24 के रेवेन्यू में लगभग 40% का योगदान दिया), वहीं, ये इलेक्ट्रिक व्हीकल बैटरी केमिकल्स जैसे नए क्षेत्रों में डायवर्सिफ़ाई हो रही है. FY25 के लिए ₹800 करोड़ आवंटित करने के साथ रेफ़्रिजेंट्स पर निकट-अवधि के लिए उसका फ़ोकस कम हो सकता है.

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स्टैलियन इंडिया

भले ही, स्टैलियन इंडिया ने अपने IPO से सबका ध्यान अपनी ओर खींचा है, लेकिन ये मुख्य रूप से घरेलू बाज़ार में एक ट्रेडिंग कंपनी के रूप में काम करती है. अपनी बड़ी प्रतिस्पर्धियों के विपरीत, ये बड़े स्तर पर काम नहीं करती है और बैकवार्ड इंटीग्रेशन या ऊंची क़ीमत वाले उत्पादों की पेशकश का अभाव है. नतीजतन, इसके मार्जिन और ग्रोथ की संभावनाएं ख़ासी सीमित हैं.

...अब निवेशक की बात

रेफ़्रिजेंट इंडस्ट्री बड़े अवसर प्रदान करता है, लेकिन चुनौतियां बनी हुई हैं.

  • हाइड्रोफ्लोरोओलेफिन (HFO) और हाइड्रोकार्बन (जैसे R290) जैसे अगली पीढ़ी के रेफ़्रिजेंट से R32 के प्रभुत्व के लिए खतरा हो सकता है, जो पर्यावरण पर और भी कम प्रभाव डालते हैं.
  • अगर R32 की क़ीमतों में बढ़ोतरी अल्पकालिक साबित होती है, तो कच्चे माल विशेष रूप से फ्लोरस्पार और एनहाइड्रस हाइड्रोजन फ्लोराइड (AHF) की क़ीमतों में उतार-चढ़ाव के कारण मार्जिन पर दबाव पड़ सकता है.

इन जोखिमों के बावजूद, ग्रोथ की संभावना मज़बूत बनी हुई हैं. SRF और नवीन फ्लोरीन अपने बैकवार्ड इंटीग्रेशन, बड़े पैमाने पर काम करने और रणनीतिक निवेशों के कारण अलग हैं. स्टैलियन इंडिया का IPO इस क्षेत्र में उम्मीदों को दर्शाता है, लेकिन स्थापित कंपनियों के साथ प्रतिस्पर्धा करने की उसकी मुश्किलें भी जाहिर होती हैं.

रेफ़्रिजेंट इंडस्ट्री एक अहम मोड़ पर है. वो कंपनियां विजेता बनेंगी जो प्रॉफ़िटेबिलिटी और इनोवेशन को बनाए रखते हुए स्थिरता से जुड़े बदलाव की तरफ़ आगे बढ़ती हैं. अंत में, क्या ये बदलाव एक स्थायी परिवर्तन या अस्थायी उथल-पुथल को चिह्नित करते हैं, ये इस बात पर निर्भर करेगा कि इंडस्ट्री कैसे नियमों, प्रौद्योगिकियों और बाजार के स्वरूप के अनुकूल होता है.

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