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एक्सपर्ट और ज्ञान की थाली

आपने कुछ रेस्टोरेंट्स की सजी हुई थाली देखी होगी जिसमें दर्जनों व्यंजन सजे होते हैं? मार्केट एक्सपर्ट इसी तरह होते हैं.

मार्केट एक्सपर्ट्स की थाली: शोर में खोई निवेश की समझदारी

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आज जब मैं लिख रहा हूं, तो फ़ाइनांस मीडिया के मुताबिक़ सेंसेक्स ने 'गोता' लगा दिया है और पिछले महीने 4.5 प्रतिशत से ज़्यादा की गिरावट आई है. ऐन मौक़े पर, हमारा भरोसा बरक़रार रखते हुए तमाम मार्केट एक्सपर्ट्स अपने चिर-परिचित अंदाज़ में इसके कारणों और स्पष्टीकरणों की थाली परोसने निकल आए हैं. उनमें से हर कोई सर्व-ज्ञानी भाव लिए गंभीर मुद्रा में पेश हो रहा है.

इस समय सबसे फ़ेवरेट वजह है मिडिल ईस्ट में जियो-पोलिटिकल टेंशन. अचानक हमारे मार्केट को एहसास हुआ है कि ये इलाक़ा ध्यान केंद्र कहलाए जाने लायक़ नहीं है. हमारे एक्सपर्ट्स इस बात की साफ़-सुथरी तस्वीरें पेश कर रहे हैं कि हो न हो ईरान और इज़राइल के बीच चल रही टेंशन की वजह से ही मुंबई के शेयरों टांगें कांप रही हैं. उधर, विदेशी संस्थागत निवेशकों (FIIs) का भारतीय शेयरों को बेचने का डर भी लगातार खाए जा रहा है. एक कहानी ये है कि उन्हें भारतीय वैल्युएशन के हाई होने का पता लग गया है - ये रहस्योद्घाटन उन्हें सुबह गर्म चाय की चुस्की लेते हुए अचानक होंठ जलने की तरह हुआ है, वैसे ये और बात है कि यही वैल्युएशन पिछले कुछ महीनों में उतना ही हाई था जब वो ख़रीदारी करने में व्यस्त थे.

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स्पष्टीकरणों की सतरंगी परेड चौंकाने वाली विविधता के साथ क़दम-ताल करती आगे बढ़ रही है. निराश करने वाली कॉर्पोरेट अर्निंग (कौन जानता था कि कंपनियां नाक की सीध में ग्रो नहीं करतीं?), हाई वैल्युएशन (समस्या जो रहस्यमयी ढ़ंग से तभी प्रकट होती है जब मार्केट गिरता है), और हमेशा से भरोसेमंद रही अमेरिकी ट्रेज़री यील्ड के बारे में हमें एक ख़ुलासे की तरह बताया जाता है. ये भी बताया जाता है कि बैंकिंग सेक्टर के नतीजे उम्मीदों पर खरे नहीं उतर रहे हैं, और FMCG कंपनियां उस रफ़्तार से नहीं बढ़ रही हैं जिसकी स्प्रेडशीट की कला में माहिर योद्धाओं ने भविष्यवाणी की थी. ये कितनी बड़ी बात है कि जब-जब एक्सपर्ट्स को मार्केट की चाल के लिए एकदम साफ़-सुथरे कारणों की ज़रूरत होती है, तब-तब ऐन वक़्त पर ये सब भारतीय अर्थव्यवस्था के अहम फ़ैक्टर बन जाते हैं.

और, घरेलू मैक्रो और राजनीति "ठहरे हुए टैक्स कलेक्शन" और आर्थिक स्थिति पर एक्शन लेने की कमी की वजह से हैं. और, ज़ाहिर है, चुनावों के साथ, हर राजनीतिक कानाफूसी मार्केट पर असर करने वाली घटना है.

लेकिन यहां जो बात असल में दिलचस्प है वो ये है: कुछ महीने पहले, मैंने जापान की एक ऐसी ही स्थिति के बारे में लिखा था, जहां उनका मार्केट एक ही दिन में 12.4 प्रतिशत गिरा, लेकिन अगले ही दिन 10.2 प्रतिशत वापस उछल गया. वहां के एक्सपर्ट के पास भी - बैंक ऑफ़ जापान की ब्याज दरों से लेकर येन कैरी ट्रेड के पतन तक - झोली भर कारण थे, यानि अलग-अलग मार्केट के लिए एक ही स्क्रिप्ट, फिर चाहे इस स्क्रिप्ट को अगले ही दिन बदलना क्यों न पड़े.

ये सब हमें मार्केट एक्सपर्ट्स का एक दिलचस्प सच दिखाता है: अगर आप किसी ख़ास दिन मार्केट में हुए उतार-चढ़ाव के कारणों की तलाश में हैं, तो वो आपको हमेशा मिल जाएंगे. ये कारण पूरे तर्कशील होंगे, स्पष्टता से व्यक्त किए गए होंगे, और पूरे भरोसे के लगेंगे. और हां, ज़्यादातर मामलों में लंबे समय के दौरान, ये आपकी आर्थिक भलाई को लेकर किसी काम के नहीं होंगे.

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जैसा कि मैंने पहले भी कई बार कहा है, आप पिछले कुछ दशकों के बारे में सोचें. हम युद्धों, तेल के संकटों, हर्षद मेहता कांड, एशियाई संकट, डॉट-कॉम की तबाही, 2008 के फ़ाइनेंशियल क्राइसिस, कोविड-19 और टीवी सीरियल के कई सीज़न भरने के लिए काफ़ी राजनीतिक ड्रामों से बच कर निकले हैं. इस सबके बावजूद, डाइवर्सिफ़ाई करना और नियम से निवेश करने जैसे बुनियादी सिद्धांतों पर टिके रहने वाले अनुशासित निवेशकों ने बहुत बढ़िया प्रदर्शन किया है. बेदम हेडलाइनें चाहे कुछ भी सुझाएं, उसके बावजूद मौजूदा मार्केट की गिरावट कुछ ख़ास नहीं है. हां, सेंसेक्स का ग्राफ़ पिछले कुछ महीनों में एक अलग तरह की गिरावट का ट्रेंड ज़रूर दिखाता है. लेकिन अगर आप अगले एक या दो दशक के लिए निवेश कर रहे हैं, तो ये गिरावट पिछले साल के मानसून की तरह यादगार रहेगी - यानी कतई याद नहीं रहेगी.

तो, इस "मुश्किल" दौर में एक समझदार निवेशक क्या करे? सबसे पहले, ये पहचाने कि मार्केट के उतार-चढ़ाव हमारे शहरों के ट्रैफ़िक की तरह ही नैसर्गिक है - ये कहीं नहीं जाने वाले, और इसे लेकर परेशान होने का कोई फ़ायदा नहीं. इसके बजाय, इस मौक़े का इस्तेमाल अपने एसेट एलोकेशन की समीक्षा के लिए करें. अगर मौजूदा गिरावट आपकी रातों की नींद हराम कर रही है, तो शायद आपका पोर्टफ़ोलियो आपके स्वभाव से ज़्यादा रिस्क उठा रहा है. सफल निवेश का मतलब मार्केट की हर अड़चन या एक्सपर्ट की घोषणाओं पर प्रतिक्रिया करना नहीं है. इसका मतलब है अनुशासन बनाए रखना, मार्केट साइकिल के दौरान निवेश में बने रहना और मार्केट की स्थितियों की परवाह किए बग़ैर नियम से अपने निवेश बढ़ाते रहना. ये कला है मार्केट के शोर को नज़रअंदाज़ करते हुए लगातार पूंजी जोड़ने की.

याद रखें, अगर कोई बुरी ख़बरों से हमेशा डरता रहे, तो वो कभी निवेश नहीं कर पाएगा. और क्या ऐसा करना सबसे बड़ी मूर्खता नहीं होगी? अगली बार जब आप एक्सपर्ट्स को मार्केट की हलचलों पर पूरे आत्मविश्वास से ज्ञान बघारता देखें, तो इसे एक मनोरंजन समझें - बस देखने वाला मनोरंजन, ऐसा कुछ कर गुज़रने वाला नहीं, जिसके आधार पर आप अपनी जमा-पूंजी के फ़ैसले लें.

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