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क्या हो अगर आपके पोर्टफ़ोलियो का सबसे ज़्यादा नज़रअंदाज़ हिस्सा ही आपकी जमापूंजी की चाभी हो? कहना होगा कि बहुत से भारतीय इक्विटी निवेशक डिविडेंड को अनदेखा करने के दोषी हैं. हालांकि, डिविडेंड के ज़रिए आने वाला पैसा सभी को अच्छा लगता है, लेकिन ये दिलचस्पी बस यहीं तक सीमित रहती है. ज़्यादातर इक्विटी निवेशकों का पहला लक्ष्य, स्टॉक की क़ीमत से बड़ा मुनाफ़ा कमाना होता है और अक्सर, डिविडेंड के पैसे बेहद मामूली रक़म समझ लिए जाते हैं.
लंबे समय के निवेश का नज़रिया रखने वाले किसी भी व्यक्ति के लिए ये एक ग़लती है. ज़्यादातर लोग स्टॉक को उसकी क़ीमत से काफ़ी ज़्यादा पर बेचने का एकमात्र लक्ष्य रखते हैं, और डिविडेंड पाना, बहुत छोटा पैसा लगता है. ये सोच समझ में तो आती है लेकिन इसमें बड़ी तस्वीर समझ में नहीं आती. एक निवेशक के तौर पर डिविडेंड पर ध्यान देना आपके लिए कभी-कभार बोनस मिलने से कहीं बड़ी बात हो सकती है. क्या हो, अगर मैं आपसे कहूं कि शांति से मिलते रहने वाला डिविडेंड लंबे समय में आपके पोर्टफ़ोलियो की सफलता का सबसे बड़ा सिग्नल हो सकता है?
भारत एक बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था है, न केवल व्यापक आर्थिक मायनों में, बल्कि इस मायने में भी कि भारतीय निवेशक की इक्विटी से क्या चाहते हैं. ग्रोथ पर हमारा ध्यान मज़बूती से जमा हुआ है, जैसा कि हम मार्केट परफ़ॉर्मेंस ट्रैक करने के तरीक़े से देख सकते हैं. जहां डिविडेंड को सेंसेक्स और निफ़्टी जैसे बड़े इंडेक्स के TRI (टोटल रिटर्न इंडेक्स) संस्करण में देखा जा सकता है, मगर सिर्फ़ प्राइस पर आधारित संस्करण ही सुर्ख़ियों में छाए रहते हैं. स्टॉक के इवैलुएशन में डिविडेंड अक्सर दरकिनार कर दिए जाते हैं.
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यहां तक कि जब डिविडेंड के बारे में सोचा जाता है, तो आमतौर पर ऊंची डिविडेंड यील्ड पर ज़्यादा ध्यान दिया जाता है. हालांकि, ये नज़रिया हमारे जैसी ग्रोथ-ओरिएंटेड अर्थव्यवस्था में अक्सर फ़ेल होता है. हाई डिविडेंड यील्ड या कम पी/ई रेशियो जैसे दूसरे पारंपरिक वैल्यू इंडिकेटर कभी-कभी ख़तरे का निशान हो सकते हैं, जो बिज़नस की समस्याओं की ओर इशारा करते हैं. ऐसे में, ये और भी अहम हो जाता है कि ज़्यादा बारीक़ नज़रिया अपनाया जाए.
वैल्यू रिसर्च में हमने एक अलग दिशा में क़दम उठाया है: एब्सोल्यूट यील्ड के बजाय डिविडेंड ग्रोथ पर फ़ोकस करने का. डिविडेंड-ग्रोथ निवेश में ऐसी कंपनियों को पहचाना शामिल है जो न केवल लगातार डिविडेंड देती रहें बल्कि साल-दर-साल उन्हें बढ़ाती भी रहें. इस तरीक़े में हाई क्वालिटी बिज़नस तलाशने पर ध्यान देना होता है - जिनमें प्रतिस्पर्धीयों के मुक़ाबले बढ़त हो, लगातार होने वाली ग्रोथ हो और फ़ाइनेंशियल मैनेजमेंट ईमानदारी से किया जाता हो.
ये सोच पूरी तरह से नई नहीं है. कुछ समय पहले, मुझे नाथन विंकलप्लेक की लिखी किताब, 'डिविडेंड ग्रोथ मशीन' में इसे लेकर दिलचस्प नज़रिया मिला. हालांकि ये किताब अमेरिकी मार्केट के लिए है, लेकिन इसके सिद्धांत यूनिवर्सल हैं. असल में, हमने एक साल से ज़्यादा अपनी स्टॉक मार्केट मैगज़ीन, वेल्थ इनसाइट में इस रणनीति के एक संस्करण की खोज की थी.
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हमारी टीम ने भारतीय निवेशकों के लिए इसे ढालना और तराशना जारी रखा. जल्द ही ये हमें ये साफ़ हो गया कि डिविडेंड - ख़ासतौर पर उनकी ग्रोथ - किसी कंपनी की फ़ाइनेंशियल हेल्थ, मैनेजमेंट क्वालिटी और लंबे समय में कंपाउंडिंग की क्षमता का एक ताक़तवर संकेत होती है. परिणाम इतने बढ़िया थे कि हमने इसे एक क़दम आगे ले जाने का फ़ैसला किया. इसका नतीजा था, सावधानी से तैयार किया गया डिविडेंड ग्रोथ पोर्टफ़ोलियो, जो वैल्यू रिसर्च स्टॉक एडवाइज़र के सब्सक्राइबरों के लिए उपलब्ध है.
ये पोर्टफ़ोलियो केवल सैद्धांतिक नहीं है. इसे मज़बूत विश्लेषण के आधार पर बनाया गया है. ये ऐसी भारतीय कंपनियों पर फ़ोकस करता है जो डिविडेंड ग्रोथ के सिद्धांतों को और बेहतर कर देती हैं. इन कंपनियों के पास मज़बूत बुनियादी सिद्धांत, बढ़ते डिविडेंड का ट्रैक रिकॉर्ड और लगातार लंबे समय के रिटर्न की क्षमता है.
साल 2025 में उतरते हुए, ये अच्छा समय होगा आपके पोर्टफ़ोलियो को परखने और ख़ुद से इस सवाल को पूछने का: क्या आप डिविडेंड पर उतना ध्यान दे रहे हैं जिसके वो हक़दार हैं? ये ऐसा साल होना चाहिए जब आप शांति से अपनी पूंजी बढ़ाते जाएं, एक-एक कर मिलते और बढ़ते हुए डिविडेंड के साथ.
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