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NTPC ग्रीन, अडानी ग्रीन, ACME सोलर को लेकर सावधान!

निवेश से पहले इन शेयरों के वैल्यूएशन को लेकर जानें

Which is the best solar stock to buy? NTPC Green, Adani Green, ACME Solar

ग़लती करना मानवीय स्वभाव है, लेकिन सोलर एनर्जी बनाने वाली कंपनियों के मामले में ऐसा नहीं है. असल में, उनके लिए किसी भी ग़लती को करने की गुंजाइश नहीं है. दांव बहुत ऊंचे लगे हुए हैं. इससे हमारा मतलब निवेशकों की उम्मीदों और इन कंपनियों में उनकी वास्तविक हिस्सेदारी दोनों से है. NTPC ग्रीन एनर्जी, अडानी ग्रीन और ACME सोलर अपने आसमान छूते वैल्यूएशन के लिए ख़ासी सुर्खियों में हैं. मिसाल के तौर पर, NTPC ग्रीन के 290 गुना के चौंका देने वाले P/E पर आग़ाज़ करने के बावजूद उसमें तेज़ी जारी है. अडानी ग्रीन का स्टॉक 160 गुना पर कारोबार कर रहा है, जबकि ACME सोलर 24 गुना का P/E बनाए हुए है. हालांकि, ACME सोलर वास्तव में घाटे में चल रही है (यदि हम अन्य आय और असामान्य गेन को छोड़ दें). बाज़ार में किन वजहों से ये तेज़ी दिख रही है?

1) रिन्युएबल एनर्जी की बढ़ती मांग

भारत का एनर्जी सेक्टर एक बड़े बदलाव से गुज़र रहा है. पिछले पांच वर्षों में, देश की रेन्युएबल एनर्जी की क्षमता में सालाना 9 फ़ीसदी की बढ़ोतरी हुई है, जो फ़ाइनेंशियल ईयर 18 की 118 गीगावाट से बढ़कर फ़ाइनेंशियर ईयर 23 में 201 गीगावाट हो गई है. ये ग्रोथ सिर्फ़ प्रभावशाली ही नहीं है, बल्कि ये महत्वपूर्ण भी है. हर साल बिजली की मांग में लगभग 7 फ़ीसदी की ग्रोथ के साथ, भारत ने एक महत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किया है, जिसके मुताबिक़ 2030 तक इसकी 50 फ़ीसदी ऊर्जा ज़रूरतें रिन्युएबल एनर्जी से पूरी होनी चाहिए.

सोलर पावर बनाने वाली कंपनियों के लिए, ये एक सुनहरा मौक़ा है. और वे मांग में बढ़ोतरी को पूरा करने के लिए अपनी ऑपरेट करने की क्षमताओं को बढ़ाकर इसका फ़ायदा उठा रही हैं.

2) मांग और उसे लेकर कंपनियों की स्थिति

प्रमुख कंपनियां क्या कर रही हैं:

  • अडानी ग्रीन: वर्तमान में 11.2 गीगावॉट पर, कंपनी अगले पांच से छह वर्षों में 50 गीगावॉट की बड़ी क्षमता हासिल करने का लक्ष्य लेकर चल रही है, जिसमें सोलर पोर्टफ़ोलियो सबसे आगे है.
  • NTPC ग्रीन: 3.3 गीगावॉट पर परिचालन करते हुए, NTPC ग्रीन के पास 23 गीगावॉट के विस्तार की योजना है, जिसमें से 13 गीगावॉट क्षमता वाले प्रोजेक्ट पहले ही एलोकेट हो चुके हैं.
  • ACME सोलर: 1.3 गीगावॉट परिचालन के साथ, इसके पास 2.2 गीगावॉट के प्रोजेक्ट निर्माणाधीन है और वर्तमान में 1.8 गीगावॉट के प्रोजेक्ट पाइपलाइन में है.

इतनी बड़ी विस्तार योजनाओं के साथ, ये कंपनियां न केवल आकार में बढ़ रही हैं, बल्कि वे रिन्युएबल एनर्जी की बढ़ती मांग का फ़ायदा उठाने के लिए भी ख़ुद को तैयार कर रही हैं. उद्योग को लंबी अवधि के सप्लाई कॉन्ट्रैक्ट्स भी लाभ मिलता है, जो रखरखाव लागत कम होने के कारण ऊंचा ऑपरेटिंग मार्जिन पक्का करते हैं.

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ऊंची लेकिन कमज़ोर उम्मीदें

क्षमता बढ़ाने से अनुमानित रूप से क्या फ़ायदे हो सकते हैं? और क्या मौजूदा वैल्यूएशन इनका समर्थन करते हैं? हमने इस पर एक एनालेसिस किया. हमने जो पाया वो ये है:

सालाना 15 फ़ीसदी रिटर्न लंबे समय के मार्केट के एवरेज से से थोड़ा ऊपर है और इसे हासिल करने के लिए तीनों कंपनियों को अगले पांच साल में अपने रेवेन्यू और टैक्स के बाद के फ़ायदे को पांच से छह गुना बढ़ाना होगा! ये हासिल करने योग्य है क्योंकि मांग बढ़ रही है और कंपनियां कम ख़र्चों (क्षमता स्थापित करने की शुरुआती लागतों के बाद) के कारण ठोस परिचालन मार्जिन रिपोर्ट कर रही हैं. लेकिन, अगर ये मान लिया जाए कि कुछ भी ग़लत नहीं होता है, तो भी ऐसे कई जोख़िम हैं जो उद्योग की प्रॉफ़िटेबिलिटी को ख़तरे में डालते हैं.

एक बात तो ये है कि ख़ास तौर पर प्राइसिंग से जुड़ा सरकार का रेग्युलेशन, एक बड़ा खतरा है. टैरिफ़ में कमी का किसी भी तरह का दबाव मुनाफ़े को गंभीर रूप से कम कर सकता है. उदाहरण के लिए, NTPC ग्रीन, सरकार के साथ प्रतिकूल बिजली ख़रीद समझौतों के कारण प्रति गीगावाट इंडस्ट्री-एवरेज रेवेन्यू से कम कमाती है. अडानी ग्रीन ने भी अपने पुराने कॉन्ट्रैक्ट्स के ₹5 रुपये प्रति किलोवाट की तुलना में हाल की परियोजनाओं के लिए अब लगभग ₹2.5 की गिरावट देखी है.

बिजली उत्पादकों को पारंपरिक रूप से वितरण कंपनियों की तरफ़ से भुगतान न किए जाने से जुड़े मुद्दों (सरकार द्वारा डिस्कॉम को नहीं चुकाए जाने के कारण) से भी जूझना पड़ता है, जिससे उनके कैश फ़्लो पर असर पड़ता है. रिन्युएबल एनर्जी कंपनियां भी इन जोख़िमों से अछूती नहीं हैं. इस तरह के नुक़सान से उद्योग की कमाई पर दबाव पैदा होता है.

आख़िरी बात

जोख़िमों से ये भी ज़ाहिर होता है कि मौजूदा महंगे वैल्यूएशन या एंट्री प्वाइंट्स ग़लती की कोई गुंजाइश नहीं छोड़ते और न ही निवेशकों के लिए सुरक्षा का कोई मार्जिन है. इंडस्ट्री के मुनाफ़े के लक्ष्यों से किसी भी तरह की चूक होने की स्थिति में भारी गिरावट देखने को मिल सकती है. याद रखें, कभी-कभी तूफ़ान से दूरी बनाकर रखना भी उतना ही समझदारी हो सकती है जितना इसमें कूदना.

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