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IGL शेयर में गिरावट क्या निवेश का मौक़ा है?

इंद्रप्रस्थ गैस के शेयर में भारी गिरावट आई है, जानिए क्यों ये एक ठोस पर अंडरवैल्यूड स्टॉक है.

Indraprastha gas share price: Is this stock a good buy?AI-generated image

इंद्रप्रस्थ गैस (IGL) कई साल से बाज़ार की नाराज़गी का सबब रही है. इसके लिए सरकार के रेग्यूलेटरी बदलावों को दोष दिया जा सकता है. हाल ही में सरकार ने शहर के गैस डिस्ट्रिब्यूटरों को दी जाने वाले सब्सिडी में 20 फ़ीसदी की कटौती की है, जो इस साल दूसरी बार हुआ है. इसका मतलब है कि IGL, जिसे सरकार से कम क़ीमतों पर अपनी गैस आपूर्ति का एक हिस्सा मिलता है, उसे अब महंगी लिक्विड नैचुरल गैस (LNG) का आयात करके इस कमी को पूरा करना होगा. इससे लागत बढ़ेगी और मुनाफ़ा घटेगा.

नतीजा, इसके शेयरों में गिरावट आई है और सितंबर के सबसे ऊंचे स्तर से 44 फ़ीसदी गिरे हैं. मार्केट की ये प्रतिक्रिया कुछ ज़्यादा बड़ी हुई है. इन झटकों के बावजूद, IGL एक मज़बूत खिलाड़ी बना हुआ है जिसने FY19 से FY24 तक हर साल टैक्स के बाद के मुनाफ़े को 17 फ़ीसदी बढ़ाया है. भले ही आप कंपनी से उसकी सरकारी आपूर्ति को पूरी तरह हटा दें, फिर भी ये एक आरामदायक स्थिति है. नीचे हम इसका आकलन कर रहे हैं.

सबसे ख़राब स्थिति क्या होगी?

सबसे ख़राब स्थिति मान लेते हैं. सरकार IGL को अपनी सब्सिडी वाली आपूर्ति पूरी तरह से बंद कर देती है. चूंकि कंपनी को अपनी गैस की 33 फ़ीसदी ज़रूरतें सरकार की कम क़ीमत वाली आपूर्ति से पूरी होती हैं, इसलिए कंपनी को इसकी जगह 13 डॉलर प्रति MMBTU के दाम पर दोगुनी क़ीमत वाली LNG (री-गैसिफ़ाइड LNG) ख़रीदनी होगी. इसका असर ये होगा कि रिटेल CNG की क़ीमतें ₹75.09 प्रति किलोग्राम से बढ़कर क़रीब ₹100 प्रति किलोग्राम हो जाएंगी (अगर IGL लागत का बोझ ग्राहकों पर डालेगी).

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इस बढ़ोतरी से पेट्रोल और डीज़ल जैसे ऑटो ईंधनों के मुक़ाबले CNG की अपील कम हो जाएगी, जिससे मांग और IGL के कारोबार पर असर पड़ेगा. लेकिन असल में, CNG अभी भी किफ़ायती विकल्प बना रहेगा. इसका गणित कुछ इस तरह है:

₹100 प्रति किलोग्राम के रेट से, CNG वाहन (25 किलोमीटर प्रति किलोग्राम की औसत माइलेज पर) के लिए प्रति किलोमीटर लागत ₹4 तक बढ़ जाएगी, जो अभी भी पेट्रोल के मुक़ाबले 24 फ़ीसदी सस्ती है, जिसकी लागत ₹5.26 प्रति लीटर (18 किलोमीटर प्रति लीटर की औसत माइलेज पर) है. इस तरह, IGL की इनपुट लागत काफ़ी बढ़ने के बाद भी CNG अपने लागत लाभ को बनाए रखेगी, जिससे ये उपभोक्ताओं के लिए एक व्यावहारिक विकल्प बनी रहेगी और मांग बनी रहेगी.

सब्सिडी वाली आपूर्ति में कमी का असर शायद ही हो. इसके अलावा, कंपनी के पास ग्रोथ के कई ऐसे विकल्प हैं, जिन्हें निवेशकों ने अनदेखा कर दिया है, और उनका ध्यान सिर्फ़ रेग्यूलेटरी मुश्किलों धाओं पर ही है.

IGL के पास बहुत कुछ है

1. लचीली सीएनजी ग्रोथ: IGL की CNG बिक्री में ठोस बढ़ोतरी हो रही है, जो ऑटो इंडस्ट्री द्वारा संचालित है, जो इसके कुल रिवेन्यू का 75 फ़ीसदी है. कुल वाहनों के फीसदी के तौर पर CNG वाहनों की पहुंच बढ़ रही है, जो FY24 में 4.2 फ़ीसदी से बढ़कर FY25 में अब तक 5 फ़ीसदी के क़रीब पहुंच गई है. ये ट्रेंड जारी रहेगा क्योंकि मारुति सुज़ुकी, हुंडई और टाटा मोटर्स जैसी प्रमुख ऑटो निर्माता अपनी CNG पेशकशों का विस्तार कर रही हैं.

2. PNG का अवसर: दिल्ली के घरों में 5.5 मिलियन से ज़्यादा LPG सिलेंडर कनेक्शन को IGL के पाइप्ड नेचुरल गैस (PNG) कनेक्शन से बदला जा सकता है. इसका PNG सेगमेंट कुल रेवेन्यू में 25 फ़ीसदी का योगदान देता है.LPG सिलेंडर से PNG में बदलाव के लिए सरकार की कोशिश ग्रोथ की संभावनाओं को बेहतर बनाने में मदद कर रही है. IGL के PNG कनेक्शन मौजूदा समय में 2.7 मिलियन हैं.

3. बड़ा सुरक्षित बाज़ार: FY25 के लिए IGL का ₹1,700 करोड़ का पूंजीगत ख़र्च हरियाणा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश के कम पहुंच वाले बाज़ारों में आपूर्ति समझौते सुरक्षित करने पर केंद्रित है. इन क्षेत्रों में CNG स्टेशन और पाइपलाइन नेटवर्क की मांग है, जो कंपनी की लंबे अरसे की ग्रोथ और डाइवर्सिफ़िकेशन पक्का करते हैं. इस समय दिल्ली क्षेत्र पर इसका दबदबा है जहां 70 फ़ीसदी कारोबार इसी का है.

हमारी सलाह

शेयर की भारी गिरावट ने इसके वैल्युएशन को कई साल के निचले स्तर पर पहुंचा दिया है. सिर्फ़ 14 गुना के P/E पर, ये 10 साल के औसत P/E 23 गुना से काफ़ी नीचे है. इसके साथ ही मज़बूत फ़ाइनेंशियल स्थिति और ग्रोथ के लिए बड़ी गुंजाइश को जोड़ दें तो IGL निवेश का एक ठोस मामला बनता है. कंपनी 20 फ़ीसदी से ज़्यादा के ROE, न्यूनतम क़र्ज़ के साथ एक अच्छी बैलेंस शीट और लगातार क़ायम रहने वाले कैश फ़्लो का दावा करती है जो इसकी ग्रोथ को फ़ंड करता है. IGL निवेशकों को हाई डिवडेंट (2.8 फ़ीसदी तक की उपज) के साथ पुरस्कृत भी करता है, जो इसके लाभ-उत्पादन कौशल को प्रदर्शित करता है.

अहम बात ये है कि इसके पास एक अनूठा सुरक्षा घेरा (moat) है जो लंबे अरसे की ग्रोथ का वादा करता है. सरकार द्वारा दिए गए IGL के आपूर्ति समझौते इसे सभी स्थानों पर 15 से 20 साल के दूसरे आपूर्ति अधिकार का वादा करते हैं. इससे, इसका बाज़ार पर प्रभुत्व बढ़ता है और कंपनी अपने भौगोलिक क्षेत्रों में लगभग पूरी तरह से स्वतंत्र हो जाती है.

ध्यान में रखने वाला एकमात्र रिस्क सरकार द्वारा इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए बढ़ता दबाव है, जो समय के साथ CNG की मांग पर असर कर सकता है. लेकिन IGL पर असल में असर डालने के लिए EV पैठ में एक तेज़ और लंबी छलांग लगानी होगी - ये अभी एक दूर का सपना लगता है.

डिस्क्लेमर: ये स्टॉक रेकमंडेशन नहीं है, निवेशकों को निवेश फ़ैसला लेने से पहले अपनी ख़ुद की रिसर्च ज़रूर करें.

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