म्यूचुअल फ़ंड क्या है?
1.1 म्यूचुअल फ़ंड की परिभाषा
Mutual Fund Definition: म्यूचुअल फ़ंड बहुत से लोगों से इकट्ठा किए पैसों का वो पूल होता है जिसे प्रोफ़ेशनल फ़ंड मैनेजर मैनेज करते हैं. ये एक तरह का ट्रस्ट है, जो बहुत से निवेशकों का पैसा सामूहिक तौर पर निवेश करता है. फ़ंड, निवेशकों का पैसा लेकर इक्विटी, बॉन्ड, मनी मार्केट इंस्ट्रुमेंट और दूसरी सिक्योरिटीज़ में निवेश करते हैं. सामूहिक निवेश से होने वाले मुनाफ़े (या नुक़सान) को निवेश के रेशियो में हर निवेशक के बीच बांटा जाता है. निवेशकों में मुनाफ़ा बांटने से पहले फ़ंड, अपनी स्कीम की नेट एसेट वैल्यू कैलकुलेट करता है और निवेश का पहले से तय ख़र्च काट लेता है. निवेश के ख़र्च या एक्सपेंस को ही एक्सपेंस रेशियो कहा जाता है. आसान शब्दों में कहें, तो बड़ी संख्या में निवेशकों से जुटाए गए पैसे से ही म्यूचुअल फ़ंड बनता है.
1.2 म्यूचुअल फ़ंड का कार्यप्रणाली
म्यूचुअल फ़ंड स्कीम बहुत से निवेशकों से पैसा इकट्ठा करती है और इस रक़म को सरकारी बॉन्ड, लिस्टेड कंपनियों के शेयर, डेट फ़ंड, इक्विटी, कॉरपोरेट बॉन्ड और अन्य एसेट्स या इन विकल्पों में मिला-जुला निवेश किया जाता है. एक विशेषज्ञ फ़ंड मैनेजर पैसे का प्रबंधन करता है और व्यक्तिगत पोर्टफ़ोलियो के लिए चुने गए विकल्प उनके निवेश उद्देश्य और जोख़िम की क्षमता के अनुसार होते हैं.
1.3 म्यूचुअल फ़ंड का इतिहास और विकास
भारत में म्यूचुअल फ़ंड के इतिहास की शुरुआत 1960 के शुरुआती सालों होता है. इसलिए, 2023 तक, भारत का म्यूचुअल फ़ंड उद्योग केवल छह दशक पुराना है. लेकिन इन 60 वर्षों में विकास की यात्रा बेहद शानदार रही है जिसे आप नीचे दिए गए समय-सीमा में देखेंगे. देश में म्यूचुअल फ़ंड का इतिहास 5 चरणों में बांटा जा सकता है, जो नीचे दिया गया है.
(1). पहला चरण (1964-87): UTI की स्थापना
भारतीय म्यूचुअल फ़ंड के इतिहास में पहला चरण 1963 में भारतीय यूनिट ट्रस्ट (UTI) के गठन के साथ शुरू होता है. भारत सरकार और भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) द्वारा संयुक्त रूप से इसकी स्थापना की गई थी. यूनिट योजना 1964 पहली स्कीम थी जिसे UTI ने लॉन्च किया. इसे ऐसे रिटेल निवेशकों के लिए एक ज़रूरी निवेश माना जाता था जो कुछ जोख़िम ले सकते थे.
स्थापना के कुछ वर्षों बाद, UTI को 1978 में RBI के नियंत्रण से हटाकर भारतीय औद्योगिक विकास बैंक (IDBI) को रेग्युलेट करने की जिम्मेदारी दी गई. फिर भी, UTI का लगभग एक दशक से ज़्यादा समय यानी 1987 तक इस क्षेत्र पर एकाधिकार रहा. 1988 के अंत तक, यूटीआई के मैनेजमेंट (AUM) के तहत ₹6,700 करोड़ की एसेट थीं.
(2). दूसरा चरण (1987-93): पब्लिक सेक्टर के म्यूचुअल फ़ंड शुरू हुए
म्यूचुअल फ़ंड इंडस्ट्री को 1987 में पब्लिक सेक्टर के बैंकों और संस्थाओं के लिए खोल दिया गया. म्यूचुअल फ़ंड के इतिहास में 1987 से 1993 तक के दौर में तेज़ विस्तार और ग्रोथ देखने को मिली. इस दौरान भारतीय स्टेट बैंक (SBI) ने देश में नए ग़ैर-UTI म्यूचुअल फ़ंड शुरू किए.
इस दौर में निवेशकों ने PSU बैंकों और LIC और GIC जैसी बीमा कंपनियों पर बहुत भरोसा किया था, इसलिए 1993 के अंत तक म्यूचुअल फ़ंड इंडस्ट्री का AUM ₹47,000 करोड़ से ज़्यादा हो गया.
(3). तीसरा चरण (1993-2003): प्राइवेट सेक्टर के म्यूचुअल फ़ंड की शुरुआत
ये चरण अप्रैल 1992 में SEBI की स्थापना के साथ जुड़ा हुआ था. चूंकि SEBI द्वारा फ़ाइनेंशियल मार्केट्स को नियंत्रित किया जा रहा था और निवेशकों के हितों की रक्षा की जा रही थी, इसलिए प्राइवेट सेक्टर के म्यूचुअल फ़ंड के बाज़ार में उतरने के साथ म्यूचुअल फ़ंड इंडस्ट्री के विस्तार के लिए ये सही समय था.
प्राइवेट सेक्टर की पहली म्यूचुअल फ़ंड स्कीम भारत में जुलाई 1993 में कोठारी पायनियर द्वारा रजिस्टर्ड करवाई गई. हालांकि, बाद में इस म्यूचुअल फ़ंड हाउस का फ्रैंकलिन टेम्पलटन म्यूचुअल फ़ंड के साथ मर्जर हो गया. इसके बाद प्राइवेट सेक्टर की कई अन्य म्यूचुअल फ़ंड स्कीम शुरू हुई. बाज़ार और सुरक्षा निवेशकों को और नियंत्रित करने के लिए SEBI ने 1996 में म्यूचुअल फ़ंड रेग्युलेशन में संशोधन किए.
तीसरे चरण के दौरान, जनवरी 2003 तक MF इंडस्ट्री में कुल ₹1,21,805 करोड़ की AUM वाली 33 म्यूचुअल फ़ंड स्कीमें शामिल थीं. इस AUM में UTI का शेयर ₹44,540 करोड़ से ज़्यादा हो गया.
4. चौथा चरण (2003 से 2014): कंसॉलिडेशन और सुस्त ग्रोथ
भारत में म्यूचुअल फ़ंड के इतिहास में ये चरण UTI अधिनियम, 1963 के निरस्त होने के साथ शुरू हुआ. नतीजतन UTI को निम्नलिखित दो संस्थाओं - SUUTI और UTI म्यूचुअल फ़ंड. UTI के विभाजन और प्राइवेट सेक्टर के फ़ंड्स में कई मर्जर के बाद कंसोलिडेशन इस युग की विशेषता थी. लेकिन 2009 की वैश्विक मंदी का बुरा असर ग्लोबल सिक्योरिटीज़ मार्केट पर पड़ा और भारत भी इससे अछूता नहीं रहा.
ऐसे बहुत से निवेशकों को मुश्किलों का सामना, जिन्होंने उस समय कैपिटल मार्केट में प्रवेश किया था जब ये अपने शिखर पर था. नतीजतन, म्यूचुअल फ़ंड प्रोडक्ट्स पर उनका भरोसा काफ़ी लड़खड़ा गया.
ग्लोबल फ़ाइनेंशियल क्राइसिस के प्रभावों से जूझते हुए, भारतीय म्यूचुअल फ़ंड इंडस्ट्री को बदलने और अपनी पिछली रफ्तार को पुनः प्राप्त करने के लिए प्रेरित हुआ. हालांकि, इसके परिणाम धीरे-धीरे मिले, जिसके चलते उद्योग के AUM में 2010 से 2013 तक सुस्त ग्रोथ देखने को मिली.
5. पांचवां चरण ( मई 2014 से शुरू): बदलाव और सुधार की शुरुआत
भारत में मई 2014 से शुरू हुआ म्यूचुअल फ़ंड के इतिहास का पांचवां चरण इस उद्योग के लिए एक बदलाव के दौर के रूप में चिह्नित हुआ. म्यूचुअल फ़ंड की पहुंच को विशेष रूप से टियर II और टियर III शहरों में बढ़ाने की ज़रूरत को पहचानते हुए SEBI ने पहले सितंबर 2012 से प्रगतिशील उपाय किए थे. ये सुधार, म्यूचुअल फ़ंड के क्षेत्र में पुनरुत्थान का चरण निर्धारित करते हैं.
इसके चलते ही, इंडस्ट्री का AUM मई, 2014 के ₹10 लाख करोड़ से बढ़कर नवंबर, 2020 तक ₹30 लाख करोड़ की सीमा को पार कर गया. अगस्त 2023 के अंत तक, ये आंकड़ा ₹46.63 लाख करोड़ हो गया. इस तरह, एक दशक में इसने छह गुनी ग्रोथ दर्ज की.
म्यूचुअल फ़ंड के प्रकार
2.1 इक्विटी म्यूचुअल फ़ंड
इक्विटी म्यूचुअल फ़ंड ऐसी स्कीमें हैं, जो अपनी रक़म का बड़ा हिस्सा तमाम कंपनियों की इक्विटी या इक्विटी से जुड़ी सिक्योरिटीज़ में निवेश करती हैं. इक्विटी का मतलब होता है हिस्सेदारी. इसे स्टॉक या शेयर में निवेश भी कहते हैं. हालांकि किसी कंपनी के शेयरों में सीधे-सीधे निवेश करना काफ़ी सोचने समझने वाला काम होता है, पर म्यूचुअल फ़ंड के ज़रिए जो निवेश शेयरों में किया जाता है वो शेयर बाज़ार के उतार-चढ़ाव का जोख़िम कहीं कम कर देता है. ऐसा इसलिए क्योंकि फ़ंड निवेशकों के पैसे को एक्सपर्ट मैनेज करते हैं. वैसे, बॉन्ड, फ़िक्स्ड डिपॉज़िट जैसे निवेश के पारंपरिक विकल्पों की तुलना में स्टॉक इन्वेस्टमेंट ज़्यादा जोख़िम वाला होता ही है.
2.2 डेट म्यूचुअल फ़ंड
डेट फ़ंड (debt fund) की स्कीमें मुख्य रूप से फ़िक्स्ड इनकम देने वाली डेट सिक्योरिटीज में निवेश करती हैं. डेट फ़ंड का सबसे बड़ा मक़सद कम समय में स्थिरता के साथ मुनाफ़ा देना होता है. असल में, इन फ़ंड्स में पूंजी को सुरक्षित रखने पर ज़्यादा ज़ोर होता है इसलिए इनमें फ़ंड निवेशक को सुरक्षा तो मिलती है, लेकिन मुनाफ़ा भी इक्विटी की तुलना में कम ही मिलता है.
2.3 हाइब्रिड म्यूचुअल फ़ंड
हाइब्रिड म्यूचुअल फ़ंड स्कीमें इक्विटी और डेट में मिलाजुला निवेश करती हैं. इनमें इक्विटी और डेट दोनों का ही फ़ायदा उठाने का लक्ष्य होता है. इन फ़ंड्स की कोशिश होती है कि इक्विटी में निवेश से ऊंचा रिटर्न भी लिया जाए और डेट में निवेश करके फ़ंड के पोर्टफ़ोलियो का रिस्क कम किया जाए और स्थिरता भी बनाए रखी जाए.
2.4 इंडेक्स फ़ंड और ETF
इंडेक्स म्यूचुअल फ़ंड और ETF निवेश के पैसिव विकल्प हैं जो एक संबंधित बेंचमार्क इंडेक्स में निवेश करते हैं. इंडेक्स फ़ंड्स म्यूचुअल फ़ंड्स की तरह काम करते हैं, जबकि ETF में शेयरों की तरह कारोबार होता है. इसलिए समान पैसिव निवेश की रणनीति के लिए एक के मुक़ाबले दूसरे को चुनना आपकी निवेश वरीयता पर निर्भर करता है.
ETF इंट्राडे ट्रेड, लिमिट या स्टॉप ऑर्डर्स और शॉर्ट-सेलिंग के लिए उपयुक्त हैं लेकिन अगर आप उन लोगों में से नहीं हैं जो बाज़ार को टाइम करना यानी अनुमान लगाना पसंद करते हैं, तो इंडेक्स फ़ंड्स आपके लिए हैं. भले ही, अक्सर होने वाले ट्रांज़ेक्शन कमीशन से जुड़े ख़र्च को बढ़ा सकते हैं और आपके रिटर्न को घटा सकते हैं, लेकिन उनमें इंडेक्स फ़ंड्स की तुलना में कम एक्सपेंस रेशियो होता है. लेकिन इंडेक्स फ़ंड्स आपकी फ़ाइनेंशियल ज़रूरतों के लिए उपयुक्त विकल्प प्रदान करते हैं, जैसे लंबी-अवधि के लक्ष्यों के लिए ग्रोथ ऑप्शन और रेग्युलर इनकम के लिए डिविडेंड ऑप्शन. आप इंडेक्स फ़ंड में SIP के ज़रिये थोड़ी-थोड़ी रक़म के साथ नियमित रूप से निवेश कर सकते हैं. ETF के विपरीत, इंडेक्स फ़ंड्स में निवेश करने के लिए आपको डीमैट अकाउंट की ज़रूरत भी नहीं है.
ये भी पढ़िए- म्यूचुअल फ़ंड में निवेश कैसे करें? निवेश शुरू करने वालों के लिए इन्वेस्टमेंट गाइड
म्यूचुअल फ़ंड में निवेश के फ़ायदे
3.1 विविधीकरण (Diversification)
निवेश करने का फैसला लेते समय रिस्क और रिटर्न के बीच संतुलन क़ायम करना महत्वपूर्ण है. डायवर्सिफ़िकेशन (विविधीकरण) इस संतुलन को हासिल करने के लिए एक अहम रणनीति है, क्योंकि इसके द्वारा आप अपने निवेश को विभिन्न एसेट क्लास और सेक्टरों में बांट सकते हैं, जिससे आपका जोख़िम कम हो जाता है. इससे आपको निवेश पर तुलनात्मक रूप से ज़्यादा फ़ायदा हासिल करने में मदद मिल सकती है.
3.2 प्रोफ़ेशनल मैनेजमेंट
म्यूचुअल फ़ंड्स का प्रबंधन अनुभवी और प्रशिक्षित फ़ंड मैनेजर्स द्वारा किया जाता है, जो बाज़ार का विश्लेषण कर सही समय पर सही निवेश के फ़ैसले लेते हैं. इससे निवेशकों को बिना ज़्यादा जानकारी के भी फ़ायदा कमाने का अवसर मिलता है.
3.3 तरलता (Liquidity)
म्यूचुअल फ़ंड्स को किसी भी समय बेचा या रिडीम किया जा सकता है, जिससे ज़रूरत पड़ने पर निवेशकों को जल्दी नक़दी मिल जाती है. म्यूचुअल फ़ंड में ये सुविधा निवेश के दूसरे विकल्पों की तुलना में ज़्यादा आसान है.
3.4 कर लाभ (Tax Benefits)
ELSS (Equity Linked Savings Scheme) म्यूचुअल फ़ंड में इनकम टैक्स एक्ट के सेक्शन 80C के तहत टैक्स छूट की सुविधा देते हैं. इसके अलावा, लंबे समय के लिए निवेश पर कैपिटल गेन टैक्स भी कम हो सकता है.
3.5 कम जोख़िम और सुरक्षित निवेश विकल्प
म्यूचुअल फ़ंड्स में निवेश विभिन्न एसेट्स (शेयर, बॉन्ड आदि) में बंटा होता है, जिससे एक ही जगह ज़्यादा पैसा लगाने का जोख़िम कम हो जाता है. इससे निवेश सुरक्षित और बैलेंस बना रहता है.
3.6 निवेश में पारदर्शिता
म्यूचुअल फ़ंड्स नियमित रूप से पोर्टफ़ोलियो डिटेल और परफ़ॉर्मेंस रिपोर्ट जारी करते हैं. इससे निवेशकों को अपने निवेश की स्थिति की सही जानकारी मिलती रहती है, जिससे भरोसा बढ़ता है.
म्यूचुअल फ़ंड में निवेश कैसे करें?
4.1 म्यूचुअल फ़ंड चुनते समय ध्यान रखने वाली बातें
म्यूचुअल फ़ंड चुनते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना बहुत ज़रूरी है ताकि आपके निवेश के लक्ष्य पूरे हों और जोख़िम का प्रबंधन किया जा सके:
निवेश का उद्देश्य और समयावधि
लक्ष्य आधारित निवेश: आपको ये तय करना होगा कि आप किस उद्देश्य के लिए निवेश कर रहे हैं (जैसे रिटायरमेंट, बच्चों की शिक्षा, घर ख़रीदना आदि)।
समयावधि:
कम अवधि (1-3 साल): लिक्विड फ़ंड या अल्ट्रा-शॉर्ट-ड्यूरेशन फ़ंड
मध्यम अवधि (3-5 साल): बैलेंस्ड फ़ंड या हाइब्रिड फ़ंड
लंबी अवधि (5+ साल): इक्विटी फ़ंड
जोख़िम उठाने की क्षमता
कम जोख़िम: डेट फ़ंड, लिक्विड फ़ंड
मध्यम जोख़िम: हाइब्रिड फ़ंड, बैलेंस्ड एडवांटेज फ़ंड
भारी जोख़िम: इक्विटी फ़ंड (लार्ज कैप, मिड कैप, स्मॉल कैप)
यदि आप जोख़िम लेने के इच्छुक नहीं हैं, तो कंज़र्वेटिव या कम जोख़िम वाले फ़ंड को प्राथमिकता दें.
फ़ंड का पिछला प्रदर्शन
पिछले 3-5 साल का रिटर्न देखना ज़रूरी है. भले ही, अतीत का प्रदर्शन भविष्य की गारंटी नहीं है, लेकिन इससे संकेत मिलता है कि फ़ंड का प्रबंधन कैसा रहा है.
बेंचमार्क से तुलना करें: फ़ंड के प्रदर्शन को उसके बेंचमार्क इंडेक्स (जैसे Nifty, Sensex) के मुकाबले देखें.
फ़ंड मैनेजर का अनुभव और फ़ंड हाउस की प्रतिष्ठा
फ़ंड मैनेजर का अनुभव और उसकी रणनीतियां फ़ंड के प्रदर्शन पर बड़ा प्रभाव डालती हैं.
एक्सपेंस रेशियो
ये वो फ़ीस है जो फ़ंड हाउस आपकी निवेशित राशि से लेता है. कम एक्सपेंस रेशियो वाले फ़ंड ज़्यादा फ़ायदेमंद होते हैं, क्योंकि आपके रिटर्न पर कम प्रभाव पड़ता है.
एसेट एलोकेशन और फ़ंड का प्रकार
इक्विटी फ़ंड: ज़्यादा रिटर्न की संभावना लेकिन ज़्यादा जोख़िम.
डेट फ़ंड: स्थिर रिटर्न और कम जोख़िम.
हाइब्रिड फ़ंड: इक्विटी और डेट का मिश्रण, मध्यम जोख़िम.
थीमैटिक/सेक्टोरल फ़ंड: विशेष सेक्टर में निवेश, लेकिन ज्यादा जोख़िम भरे होते हैं.
SIP vs Lump Sum
यदि आपके पास एकमुश्त पैसा नहीं है, तो SIP (Systematic Investment Plan) के ज़रिए नियमित निवेश करना बेहतर हो सकता है. इससे आपको मार्केट के उतार-चढ़ाव का लाभ मिलता है.
टैक्स का असर
ELSS (Equity Linked Saving Scheme) में निवेश करने पर आपको धारा 80C के तहत टैक्स छूट मिलती है.
लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन टैक्स (LTCG) और शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन टैक्स (STCG) के बारे में समझना ज़रूरी है.
लिक्विडिटी
कुछ फ़ंड जैसे ELSS में 3 साल का लॉक-इन होता है, जबकि अन्य फ़ंड्स में कभी भी पैसे निकाले जा सकते हैं. अपनी ज़रूरत के हिसाब से फ़ंड की लिक्विडिटी का ध्यान रखें.
4.2 SIP (सिस्टेमैटिक इन्वेस्टमेंट प्लान) के लाभ
SIP (Systematic Investment Plan) के कई फ़ायदे हैं, जिससे निवेशक छोटे-छोटे निवेश करके लंबी अवधि में बड़ी पूंजी बना सकते हैं. SIP मुख्य रूप से नियमित रूप से निवेश का एक तरीक़ा है. आइए इसके 5 प्रमुख फ़ायदों पर नज़र डालते हैं:
छोटे निवेश से शुरुआत
SIP के ज़रिए आप हर महीने छोटी रक़म (जैसे ₹500 या ₹1000) से भी निवेश शुरू कर सकते हैं, जिससे आर्थिक दबाव नहीं बनता. एकमुश्त बड़ी रक़म की ज़रूरत नहीं पड़ती.
रुपये की कॉस्ट एवरेजिंग
बाज़ार में उतार-चढ़ाव के दौरान अलग-अलग क़ीमतों पर यूनिट ख़रीदने से औसत लागत कम हो जाती है. ये निवेशकों को लंबे समय में बेहतर रिटर्न पाने में मदद करता है.
लंबी अवधि में बड़ी पूंजी इकट्टी होती है
नियमित निवेश से कंपाउंडिंग का फ़ायदा मिलता है, जिससे छोटे निवेश भी लंबे समय में बड़ी पूंजी में बदल सकते हैं.
SIP अनुशासन और धैर्य को प्रोत्साहित करता है, जिससे बड़े गोल (जैसे रिटायरमेंट या बच्चों की शिक्षा) पूरे हो सकते हैं.
जोख़िम का प्रबंधन
SIP के ज़रिए निवेश चरणों में होता है, जिससे जोख़िम कम होता है और बाज़ार के उतार-चढ़ाव के दौरान सुरक्षा मिलती है.
लचीलापन और सुविधा
SIP को किसी भी समय शुरू या बंद किया जा सकता है. आप अपनी सुविधा के अनुसार निवेश की रक़म बढ़ा या घटा सकते हैं.
SIP निवेशकों को अनुशासन सिखाती है और बिना ज़्यादा जोख़िम उठाए वेल्थ तैयार करने का एक आसान तरीक़ा प्रदान करती है.
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4.3 म्यूचुअल फ़ंड ख़रीदने की प्रक्रिया (ऑनलाइन/ऑफलाइन)
Where should I buy mutual funds in India: मार्केट में कई म्यूचुअल फ़ंड स्कीमें उपलब्ध हैं और कई तरीक़े हैं जिनके ज़रिये उनमें निवेश किया जा सकता है. किसी भी डायरेक्ट और रेगुलर स्कीम में ऑनलाइन या ऑफ़लाइन दोनों तरीक़ों से निवेश किया जा सकता है. अन्य बातों की तरह इन स्कीमों के भी अपने-अपने अपने दायरे और फ़ायदे हैं, जो हर एक निवेशक के लिए अलग-अलग तरह के हो सकते हैं.
डायरेक्ट प्लान: 1 जनवरी 2013 से, सभी म्यूचुअल फ़ंड कंपनियों ने अपनी सभी मौजूदा फ़ंड स्कीमों के तहत एक नई स्कीम -डायरेक्ट प्लान की शुरुआत की. ये प्लान उन निवेशकों को ध्यान में रखकर बनाए गए हैं जो अपने म्यूचुअल फ़ंड निवेश डिस्ट्रीब्यूटर्स के ज़रिये नहीं करते हैं, और इसलिए AMC की मौजूदा फ़ंड स्कीमों की तुलना में इनका एक्सपेंस रेशियो कम है.
इसका मतलब ये है कि एक निवेशक के रूप में आपको एक जैसा पोर्टफ़ोलियो होने के बावजूद अपने म्यूचुअल फ़ंड से थोड़ा ज़्यादा रिटर्न कमाने का मौक़ा मिलेगा. डायरेक्ट प्लान में डिस्ट्रीब्यूटर एक्सपेंस या कमीशन नहीं लगेगा, जिस कारण इन स्कीमों में सालाना फ़ीस कम लगेगी; और नतीजतन, रेगुलर स्कीमों की तुलना में इन प्लान का NAV अलग (ज़्यादा) होगा.
इंटरमीडियरी के ज़रिये: मार्केट में अलग-अलग तरह के इंटरमीडियरी मौज़ूद हैं. इनमें ज़्यादातर बैंक, राष्ट्रीय या क्षेत्रीय स्तर पर मौज़ूद डिस्ट्रीब्यूटर कंपनियां, कुछ स्टॉक ब्रोकर (ऑनलाइन ब्रोकर सहित) और बड़ी संख्या में व्यक्ति और छोटी फ़ाइनेंशियल एडवाइज़री कंपनियां शामिल हैं. सभी इंटरमीडियरी का एसोसिएशन ऑफ म्यूचुअल फ़ंड इन इंडिया (AMFI) में रजिस्टर्ड होना ज़रूरी है. इन इंटरमीडियरी को www.amfiindia.com पर ऑनलाइन सर्च किया जा सकता है. ये वेबसाइट उन इंटरमीडियरी की भी सूची उपलब्ध कराती है जिन्हें निवेशकों के साथ ग़लत जानकारी साझा करने और ठगी करने के लिए बैन किया जा चुका है. AMFI का ये क़दम निवेशकों को फ़ाइनेंशियल सुरक्षा प्रदान करता है.
आम तौर पर, इंटरमीडियरी का काम आपको म्यूचुअल फ़ंड एप्लीकेशन फ़ॉर्म उपलब्ध कराना, फ़ॉर्म भरने में आपकी मदद करना, म्यूचुअल फ़ंड ऑफ़िस में फ़ॉर्म और अन्य डॉक्युमेंट्स जमा करना और कभी-कभी अकाउंट स्टेटमेंट उपलब्ध कराना होता है. लेकिन, ये सभी सुविधाएं आपको फ़ीस देने पर मिलती हैं. आमतौर पर, एजेंट इन सेवाओं के लिए आपसे एक निश्चित फ़ीस लेते हैं.
IFAs के जरिये: IFAs यानी कि इंडिपेंडेंट फ़ाइनेंशियल एडवाइज़र ऐसे व्यक्ति होते हैं जो म्यूचुअल फ़ंड निवेश में मदद करने के लिए एजेंट के रूप में काम करते हैं. वे एप्लीकेशन फ़ॉर्म भरने में आपकी मदद करते हैं और इसे AMC में जमा भी करते हैं.
सीधे AMC के जरिये: आप सीधे AMC के जरिये भी म्यूचुअल फ़ंड स्कीम में निवेश कर सकते हैं. यदि आप पहली बार किसी म्यूचुअल फ़ंड में निवेश कर रहे हैं, तो आपको AMC के ऑफ़िस जाना पड़ सकता है. इसके बाद, आप अपने फ़ोलियो नंबर का उपयोग करके उसी AMC की अलग-अलग फ़ंड स्कीमों में ऑनलाइन (बशर्ते ये सुविधा AMC द्वारा दी जाती हो) या ऑफ़लाइन निवेश कर सकते हैं. कुछ AMCs आपको एजेंट भी उपलब्ध कराते हैं ताकि एप्लीकेशन फ़ॉर्म भरने, चेक लेने और पावती भेजने में आपकी मदद कि जा सके.
ऑनलाइन पोर्टल के ज़रिये: ऐसे कई थर्ड-पार्टी ऑनलाइन पोर्टल हैं जिनके जरिये आप AMCs की अलग-अलग म्यूचुअल फ़ंड स्कीमों में निवेश कर सकते हैं. निवेश करते समय आसान फ़ंड ट्रांसफ़र सुविधा देने के लिए ज़्यादातर पोर्टल ने बैंकों के साथ हाथ मिलाया हुआ है. ये पोर्टल शुरुआत में आपसे फ़ीस लेते हैं ताकि आपका अकाउंट खोला जा सके और आपको आसानी से निवेश करने और अपने निवेश को रिडीम करने की ऑनलाइन सुविधा दी जा सके.
अपने बैंक के ज़रिये: बैंक भी एक इंटरमीडियरी की तरह काम करते हैं और अलग-अलग AMCs की फ़ंड स्कीमों को डिस्ट्रीब्यूट करते हैं. आप अपनी बैंक शाखा के जरिये सीधे फ़ंड स्कीमों में निवेश कर सकते हैं.
डीमैट और ऑनलाइन ट्रेडिंग अकाउंट के ज़रिये: यदि आपके पास डीमैट अकाउंट है, तो आप इस अकाउंट के जरिये म्यूचुअल फ़ंड स्कीमों में निवेश कर सकते हैं.
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4.4 पोर्टफ़ोलियो का नियमित रिव्यू और संतुलन
पोर्टफ़ोलियो रिव्यू क्यों ज़रूरी है?
म्यूचुअल फ़ंड में निवेश एक लंबी अवधि की योजना हो सकती है, लेकिन बाज़ार की स्थितियां, व्यक्तिगत फ़ाइनेंशियल गोल और निवेश योजनाएं समय के साथ बदलती रहती हैं. ऐसे में, नियमित रिव्यू से ये सुनिश्चित होता है कि आपका पोर्टफ़ोलियो:
(1). आपके फ़ाइनेंशियल गोल के अनुसार प्रगति कर रहा है.
(2). बाज़ार के बदलते रुझानों और आर्थिक परिस्थितियों के अनुकूल है.
(3). आपकी जोखिम उठाने की क्षमता के अनुरूप बना हुआ है.
पोर्टफ़ोलियो का संतुलन (Rebalancing) क्यों ज़रूरी है?
समय के साथ, विभिन्न म्यूचुअल फ़ंड्स के प्रदर्शन में अंतर आने लगता है, जिससे पोर्टफ़ोलियो असंतुलित हो सकता है. उदाहरण के लिए: यदि आपने 60% इक्विटी और 40% डेट में निवेश किया था, लेकिन इक्विटी बढ़ने से यह अनुपात 70-30 हो गया है, तो आपका जोख़िम बढ़ गया है.
संतुलन का महत्व: असंतुलित पोर्टफ़ोलियो में अत्यधिक इक्विटी या हाई रिस्क एसेट्स का वेट बढ़ सकता है.
लाभ लॉक करना: रिबैलेंसिंग से फ़ायदे वाले निवेशों को आंशिक रूप से बेचकर आप उन्हें सुरक्षित कर सकते हैं.
नए अवसरों का लाभ उठाना: जिन एसेट क्लास का प्रदर्शन कमज़ोर पड़ रहा है, उनमें कम क़ीमत पर निवेश करने का मौक़ा मिल सकता है.
पोर्टफ़ोलियो का रिव्यू कब करना चाहिए?
आदर्श रूप से: हर 6-12 महीने में पोर्टफ़ोलियो की समीक्षा करें.
लाइफ़ की घटनाओं पर: शादी, बच्चे का जन्म, करियर में बड़ा बदलाव या रिटायरमेंट जैसी घटनाओं पर भी रिव्यू ज़रूरी है.
बाज़ार में बड़े उतार-चढ़ाव के समय: यदि इक्विटी बाज़ार में बड़ा उछाल या गिरावट आती है, तो संतुलन बनाना ज़रूरी हो सकता है.
रिव्यू और रिबैलेंसिंग कैसे करें?
गोल के साथ तुलना: देखें कि आपके निवेश आपके लक्ष्य के कितने क़रीब हैं.
परफ़ॉर्मेंस चेक करें: अलग-अलग फ़ंड्स की प्रदर्शन की तुलना करें.
जोख़िम प्रोफ़ाइल का विश्लेषण: क्या आप अब भी उतना ही जोख़िम उठाने के लिए तैयार हैं?
रिबैलेंसिंग: यदि ज़रूरी हो तो कुछ फ़ंड बेचें और बाक़ी में निवेश जारी रखें, ताकि एसेट एलोकेशन बना रहे.
टैक्स और ट्रांज़ैक्शन कॉस्ट का ध्यान
रिबैलेंसिंग के दौरान कैपिटल गेन टैक्स या एक्ज़िट लोड जैसे ख़र्च का भी ध्यान रखें. इससे पहले आप ये तय करें कि क्या रिबैलेंसिंग का फ़ायदा लागत से ज़्यादा है.
ऑटो रिबैलेंसिंग (SIP और SWP)
SIP (Systematic Investment Plan) के माध्यम से धीरे-धीरे निवेश कर सकते हैं जिससे निवेश औसत लागत पर होता है.
SWP (Systematic Withdrawal Plan) से नियमित आंशिक निकासी करके भी पोर्टफ़ोलियो को रिबैलेंस किया जा सकता है.
म्यूचुअल फ़ंड से संबंधित जोख़िम
5.1 बाज़ार जोख़िम
बाज़ार जोख़िम (Market Risk) म्यूचुअल फ़ंड से जुड़ा एक प्रमुख जोख़िम है. इसका अर्थ है कि फ़ंड के रिटर्न बाज़ार की उतार-चढ़ाव से प्रभावित होते हैं. यदि शेयर बाज़ार या बॉन्ड मार्केट में गिरावट होती है, तो फ़ंड की वैल्यू भी घट सकती है.
5.2 ब्याज दर जोख़िम
ब्याज दरों में बदलाव से खासकर डेट फ़ंड्स की वैल्यू प्रभावित होती है.
ब्याज दर बढ़ने पर पुराने बॉन्ड की वैल्यू घटती है, जिससे फ़ंड का रिटर्न कम हो जाता है. वहीं, ब्याज दर घटने पर पुराने बॉन्ड की वैल्यू बढ़ती है, जिससे फ़ंड का रिटर्न बेहतर होता है.
इससे सुरक्षा पाने का एक तरीक़ा है कि निवेश की अवधि और ब्याज दर के रुझान को ध्यान में रखकर फ़ंड चुनें.
5.3 क्रेडिट रिस्क
क्रेडिट जोख़िम (Credit Risk) का मतलब है कि जिन कंपनियों या संस्थानों के बॉन्ड में म्यूचुअल फ़ंड ने निवेश किया है, वे क़र्ज़ चुकाने में असफल हो सकती हैं.
ऐसे में अगर बॉन्ड इश्युअर डिफ़ॉल्ट करता है, तो निवेशकों को मूलधन और ब्याज समय पर नहीं मिलता. इससे फ़ंड की नेट एसेट वैल्यू (NAV) पर नेगेटिव असर पड़ता है.
इस स्थिति से बचने के लिए, हाई-रेटेड बॉन्ड और क्रेडिट-रिस्क को समझने वाले फ़ंड्स में निवेश करें.
5.4 जोख़िम कम करने के उपाय
विविधता (Diversification): अलग-अलग एसेट क्लास (इक्विटी, डेट, गोल्ड) में निवेश करें.
लंबी अवधि का निवेश: मार्केट उतार-चढ़ाव से बचने के लिए लंबी अवधि तक निवेश करें.
सिस्टमैटिक इन्वेस्टमेंट प्लान (SIP): नियमित अंतराल पर निवेश कर जोख़िम को औसत पर लाएं यानी रिस्क कम करें.
सही फ़ंड का चयन: अपनी जोख़िम क्षमता और लक्ष्यों के अनुसार फ़ंड चुनें.
पोर्टफ़ोलियो की समीक्षा: समय-समय पर निवेश और बाज़ार की स्थिति का विश्लेषण करें.
हाइब्रिड फ़ंड्स: इक्विटी और डेट का मिश्रण चुनकर संतुलित रिटर्न पाएं.
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म्यूचुअल फ़ंड में निवेश के लिए आवश्यक दस्तावेज़
How to buy a Mutual Fund: किसी म्यूचुअल फ़ंड स्कीम में निवेश करने के लिए आपके पास PAN और बैंक अकाउंट होना चाहिए और आपकी KYC (नो योर कस्टमर) भी पूरी होनी चाहिए. और ये बैंक अकाउंट मैग्नेटिक इंक कैरेक्टर रेकॉग्निशन कोड (MICR) और इंडियन फ़ाइनेंशियल सिस्टम कोड (IFSC) डिटेल के साथ निवेशक के नाम पर होना चाहिए. इन जानकारियों का उल्लेख चेक बुक में होता है और किसी एजेंट या डिस्ट्रीब्यूटर द्वारा कैंसिल बैंक चेक मांगना बहुत ही आम बात है.
6.1 KYC (Know Your Customer) प्रक्रिया
SEBI द्वारा दिए गए दिशा-निर्देशों के तहत, KYC की प्रक्रिया पूरी करनी ज़रूरी है. मार्केट रेगुलेटर SEBI के ये दिशा-निर्देश प्रिवेंशन ऑफ़ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट, 2002 (PMLA) का अनुपालन करते हैं. इन दिशा-निर्देशों में समय-समय पर बदलाव होता रहता है.
KYC प्रक्रिया निवेशकों के अनुकूल बनाई गई है. ये प्रक्रिया सिक्योरिटीज़ मार्केट में SEBI द्वारा रेगुलेटेड अलग-अलग इंटरमीडियरी जैसे म्यूचुअल फ़ंड, पोर्टफ़ोलियो मैनेजर, डिपॉज़िटरी पार्टिसिपेंट्स, स्टॉक ब्रोकर्स, वेंचर कैपिटल फ़ंड, कलेक्टिव इन्वेस्टमेंट स्कीम (CIS) और अन्य के लिए एक जैसी हैं. इसलिए, सिर्फ़ एक बार KYC की प्रक्रिया कर ली जाए तो इन इंटरमीडियरी से डील करते वक़्त ये प्रक्रिया दोहरानी नहीं पड़ती और निवेशकों का काम आसान हो जाता है.
6.2 पैन कार्ड और आधार कार्ड
KYC एप्लीकेशन के साथ इन डॉक्युमेंट्स को भी जमा करना पड़ता है -
- हाल की पासपोर्ट साइज़ फोटो
- पहचान का प्रमाण जैसे PAN कार्ड या UID (आधार) या पासपोर्ट या मतदाता पहचान पत्र या ड्राइविंग लाइसेंस की कॉपी
- निवास प्रमाण जैसे पासपोर्ट या ड्राइविंग लाइसेंस या राशन कार्ड या निवास का रजिस्टर्ड लीज/सेल एग्रीमेंट या लेटेस्ट बैंक अकाउंट स्टेटमेंट या पासबुक या लेटेस्ट टेलीफ़ोन बिल (केवल लैंडलाइन) या हालिया बिजली का बिल या हालिया गैस का बिल, जो कि तीन महीने से ज़्यादा पुराने न हों.
आपको इन डॉक्युमेंट्स की ख़ुद से सत्यापित की हुई कॉपी और वेरिफ़िकेशन के लिए ओरिजिनल डॉक्युमेंट्स जमा करने होते हैं. यदि वेरिफ़िकेशन के लिए ओरिजिनल डॉक्युमेंट्स उपलब्ध नहीं हैं, तो डॉक्युमेंट्स की कॉपी अधिकृत संस्थाओं द्वारा सही तरीके से सत्यापित होना ज़रूरी है. यदि आप इन ज़रूरी डॉक्युमेंट्स को जमा नहीं करते हैं, तो KYC प्रक्रिया पूरी होने में देरी हो सकती है.
भारत के निवासी अपने डॉक्युमेंट्स इन लोगों से सत्यापित करा सकते हैं: नोटरी, राजपत्रित अधिकारी, शेड्यूल कमर्शियल या को-ऑपरेटिव बैंक या मल्टीनेशनल फ़ॉरेन बैंक के मैनेजर. ये न भूलें कि कॉपी पर इनका नाम, पदनाम और मुहर लगी हुई हो.
NRIs अपने डॉक्युमेंट्स इन लोगों से सत्यापित करा सकते हैं: भारत में रजिस्टर्ड शेड्यूल कमर्शियल बैंकों की विदेशी शाखाओं के अधिकृत अधिकारी, नोटरी पब्लिक, कोर्ट मजिस्ट्रेट, न्यायाधीश, उस देश में मौज़ूद भारतीय दूतावास (जिस देश में NRI रहता है).
6.3 बैंक खाता और IFSC कोड
बैंक खाता जरूरी है क्योंकि...
निवेश और रिडेम्शन से जुड़े ट्रांजेक्शन: निवेश की राशि बैंक खाते से कटती है और रिडेम्शन की राशि उसी खाते में क्रेडिट होती है.
ऑटोमैटिक SIP: SIP के माध्यम से नियमित निवेश के लिए बैंक से ECS या ऑटो-डेबिट की सुविधा ली जाती है.
KYC और वैलिडिटी: बैंक खाता निवेशक की पहचान और पता सत्यापित करने में मदद करता है, जो KYC प्रक्रिया का हिस्सा है.
पारदर्शिता और सुरक्षा: निवेश और रिटर्न का ट्रैक रिकॉर्ड बैंक के माध्यम से साफ़-सुथरा रहता है.
डिविडेंड भुगतान: डिविडेंड सीधे बैंक खाते में ट्रांसफ़र किए जाते हैं.
इसलिए, म्यूचुअल फ़ंड में निवेश को सुरक्षित और पारदर्शी बनाने के लिए बैंक खाता अनिवार्य है.
IFSC
IFSC (इंडियन फाइनेंशियल सिस्टम कोड) एक अल्फ़ा-न्यूमेरिक कोड है जो NEFT सिस्टम से जुड़ी हुई बैंक-ब्रांच की यूनिक तरीक़े से पहचान करता है. ये 11 अंकों का एक कोड है जिसमें पहले 4 अक्षर या अल्फ़ाबेट बैंक को दर्शाते हैं और अंतिम 6 अंक (न्यूमेरिकल्स) ब्रांच को दर्शाते हैं. अल्फ़ाबेट के बाद पहला अंक 0 (शून्य) होता है. NEFT सिस्टम द्वारा IFSC का इस्तेमाल पैसे भेजने वाले बैंक और रिसीव करने वाले बैंक या उनकी ब्रांचेस की पहचान करने और ट्रांज़ैक्शन संबंधी जानकारी को बैंकों या शाखाओं तक सही तरीक़े से भेजने के लिए किया जाता है.
6.4 नामांकन (Nominee) की जानकारी
म्यूचुअल फ़ंड निवेश के लिए नॉमिनी जोड़ना अनिवार्य है. निवेशकों के पास नॉमिनेशन के लिए तीन ऑप्शन हैं:
- पहला, निवेशक CAMS और KFintech जैसे रजिस्ट्रार और ट्रांसफ़र एजेंट (RTAs) की वेबसाइट पर जा सकते हैं.
- दूसरा, वे फ़ंड हाउसों की वेबसाइटों पर जा सकते हैं.
- आख़िरी ऑप्शन, निवेशक एक बार में नॉमिनेशन अपडेट करने के लिए MF सेंट्रल प्लेटफ़ॉर्म का इस्तेमाल कर सकता है.
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म्यूचुअल फ़ंड से जुड़ी महत्वपूर्ण शर्तें और शब्दावली
7.1 नेट एसेट वैल्यू (NAV)
नेट एसेट वैल्यू (NAV) एक फ़ाइनेंशियल पैरामीटर है जो किसी कंपनी या फ़ंड के कुल एसेट्स से उसके कुल देनदारियों को घटाने के बाद की राशि को दर्शाता है. ये आमतौर पर म्यूचुअल फ़ंड्स और एसेट मैनेजमेंट कंपनियों में उपयोग किया जाता है. NAV के इस्तेमाल से निवेशकों को ये समझने में मदद मिलती है कि उनके निवेश की वैल्यू क्या है. इससे ये तय होता है कि प्रति यूनिट निवेश की क़ीमत क्या होगी.
7.2 एक्सपेंस रेशियो (Expense Ratio)
Expense Ratio Meaning: एक्सपेंस रेशियो वो फ़ीस है, जिसका आप यानी निवेशक, अपने पैसे के प्रबंधन के लिए म्यूचुअल फ़ंड कंपनियों को भुगतान करते हैं. इसमें फ़ंड मैनेजमेंट फ़ीस, एजेंट कमीशन, सेलिंग और प्रचार संबंधी ख़र्च शामिल होते हैं. आइए एक्सपेंश रेशियो के बारे में कुछ विस्तार से समझते हैं.
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7.3 लोड (एंट्री/एग्ज़िट)
म्यूचुअल फ़ंड में लोड वो फ़ीस है जो निवेशक को फ़ंड में एंट्री करते समय (एंट्री लोड) या बाहर निकलते समय (एग्ज़िट लोड) देना पड़ता है.
एंट्री लोड (Entry Load): जब आप म्यूचुअल फ़ंड में निवेश करते हैं, तो कुछ फ़ंड आपके निवेश पर एक मामूली फ़ीस लेते हैं. हालांकि, अभी अधिकतर फ़ंड्स में एंट्री लोड खत्म कर दिया गया है.
एग्ज़िट लोड (Exit Load): यदि आप फ़ंड की एक निश्चित अवधि (जैसे 1 साल) से पहले अपना पैसा निकालते हैं, तो एग्ज़िट लोड लागू होता है. ये आमतौर पर 0.5% से 2% तक हो सकता है और समय सीमा के बाद कोई शुल्क नहीं लगता.
लोड का मक़सद निवेशकों को लंबे समय तक निवेशित रहने के लिए प्रोत्साहित करना और फ़ंड मैनेजर के लिए फ़ंड मैनेजमेंट आसान बनाना होता है.
7.4 AUM (एसेट्स अंडर मैनेजमेंट)
AUM (Assets Under Management) का मतलब है म्यूचुअल फ़ंड स्कीम या AMC (Asset Management Company) के तहत मैनेज किए जा रहे कुल निवेश की रक़म. आगे जानिए AUM की अहमियत:
फ़ंड का साइज़: बड़े AUM वाले फ़ंड आमतौर पर ज़्यादा स्थिर माने जाते हैं.
लिक्विडिटी: ज़्यादा AUM का मतलब है, फ़ंड में पर्याप्त लिक्विडिटी है.
मैनेजमेंट फ़ीस: कुछ फ़ंड में AUM बढ़ने पर एक्सपेंस रेशियो कम हो सकता है.
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म्यूचुअल फ़ंड में निवेश के लिए बेस्ट प्रैक्टिस
8.1 अनुशासन और धैर्य
अनुशासन और धैर्य से ही बाज़ार से जुड़े जोख़िमों का सामना किया जा सकता है और लंबी अवधि में अच्छा रिटर्न मिल पाता है.
अनुशासन (Discipline)
नियमित निवेश: SIP (Systematic Investment Plan) के ज़रिए लगातार निवेश करना.
लालच और डर से बचना: बाज़ार में उतार-चढ़ाव के बावजूद निवेश जारी रखना.
लक्ष्य आधारित निवेश: लंबी अवधि के फ़ाइनेंशियल गोल के लिए बनाई गई योजना के अनुसार चलते रहना.
धैर्य
लंबी अवधि का नजरिया: निवेश पर अच्छे रिटर्न पाने के लिए समय देना.
बाजार के उतार-चढ़ाव सहन करना: गिरावट के समय घबराकर निवेश न निकालना.
कंपाउंडिंग का फ़ायदा: धैर्य के साथ निवेश को बनाए रखने पर आपके निवेश में समय के साथ अच्छी ग्रोथ होती है.
2024 में म्यूचुअल फ़ंड में निवेश के रुझान
8.1 नए निवेशकों के लिए उभरते अवसर
छोटे शहरों (टियर-2 और टियर-3) में म्यूचुअल फ़ंड निवेशकों की संख्या बढ़ रही है. यही वजह है कि म्यूचुअल फ़ोलियो की संख्या 20 करोड़ को पार कर गई है. इसकी एक वजह SIP की लोकप्रियता में बढ़ोतरी है.
म्यूचुअल फ़ंड की ख़ास बात ये भी है कि इसमें कम निवेश के साथ भी डायवर्सिफ़िकेशन का फ़ायदा मिल जाता है. इसीलिए, निवेशक अब हाइब्रिड और मल्टी-एसेट कैटेगरी के डायवर्सिफ़ाइड फ़ंड्स की ओर ज़्यादा आकर्षित हो रहे हैं.
8.2 टेक्नोलॉजी और म्यूचुअल फ़ंड निवेश
म्यूचुअल फ़ंड सेक्टर में टेक्नोलॉजी का प्रभाव तेज़ी से बढ़ा है. डिजिटल इनोवेशन ने न केवल निवेश की प्रक्रिया को सरल बनाया है, बल्कि निवेशकों को बेहतर रिटर्न के लिए सोच-समझकर फ़ैसले लेने में भी मदद की है. अब निवेशक ऐप्स, फ़िनटेक प्लेटफ़ॉर्म्स और आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस (AI) जैसी तकनीकों का उपयोग करके आसानी से निवेश कर सकते हैं.
निवेश ऐप्स और फ़िनटेक प्लेटफ़ॉर्म्स
बैंक और एसेट मैनेजमेंट कंपनियों (AMCs) के अलावा, कई फ़िनटेक स्टार्टअप्स ने आसान और तेज़ी से म्यूचुअल फ़ंड निवेश के लिए ऐप्स लॉन्च किए हैं. इन ऐप्स से निवेशक मिनटों में SIP शुरू कर सकते हैं. डैशबोर्ड पर रियल-टाइम ट्रैकिंग और एनालेसिस उपलब्ध होती है. पेमेंट गेटवे और UPI के ज़रिए आसान ट्रांज़ैक्शन संभव हो गए हैं.
आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस (AI) और डेटा एनालिटिक्स
AI और मशीन लर्निंग तकनीकें पोर्टफ़ोलियो मैनेजमेंट और जोख़िम प्रबंधन को और सटीक बना रही हैं। ये सिस्टम बाज़ार की चाल और निवेश रुझानों की भविष्यवाणी करने में मदद करते हैं.
निवेशकों को अलर्ट और सुझाव भेजते हैं, जिससे वे सही समय पर निर्णय ले सकें.
फ़ंड मैनेजरों के लिए एनालिटिक्स टूल्स के माध्यम से प्रदर्शन सुधारते हैं.
ब्लॉकचेन और साइबर सुरक्षा
टेक्नोलॉजी के विस्तार के साथ साइबर सुरक्षा भी अहम बन गई है. ट्रांजेक्शन को सुरक्षित और पारदर्शी बनाए रखने के लिए कई AMCs और फ़िनटेक कंपनियां ब्लॉकचेन टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कर रही हैं. इस टेक्नोलॉजी से निवेशकों का भरोसा बढ़ा है और धोखाधड़ी की आशंकाएं कम हुई हैं.
रियल-टाइम अलर्ट और पर्सनलाइज़ेशन
फ़िनटेक प्लेटफ़ॉर्मों के ज़रिए निवेशकों को रियल-टाइम अलर्ट मिलते हैं, जिससे वे अपने पोर्टफ़ोलियो पर बेहतर नियंत्रण रख पाते हैं. इसके अलावा, पर्सनलाइज़ेशन के ज़रिए निवेशकों को उनकी पसंद की स्कीमें रेकमंड की जाती हैं.
5. भविष्य के संभावित रुझान
आने वाले समय में म्यूचुअल फ़ंड इंडस्ट्री में टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल और बढ़ने की संभावना है.
वॉयस-आधारित निवेश: AI-आधारित वॉयस कमांड से निवेश आसान हो जाएगा.
ग्लोबल फ़ंड्स तक पहुंच: फ़िनटेक प्लेटफ़ॉर्म विदेशी म्यूचुअल फ़ंड्स में निवेश को और सरल बनाएंगे.
पर्सनलाइज्ड एनालिटिक्स: ऐप्स पर पर्सनलाइज़्ड रिपोर्ट्स और रेकमेंडेशन आम बात हो जाएंगी.
8.3 ग्रीन और ESG फ़ंड्स का बढ़ता प्रभाव
एन्वायरमेंट, सोशल और गवर्नेंस (ESG) आधारित फ़ंड्स में निवेश तेज़ी से बढ़ रहा है.
निवेशक अब रिटर्न के साथ-साथ नैतिक और टिकाऊ निवेश को प्राथमिकता देने लगे हैं. हालांकि, अभी ऐसा छोटे स्तर पर ही देखने को मिल रहा है.
सरकार की नीतियों और जागरूकता अभियानों ने ग्रीन फ़ंड्स की लोकप्रियता बढ़ाई है.
8.4 इंडस्ट्री की भविष्य की संभावनाएं
लंबी अवधि में SIP निवेश के ज़रिए म्यूचुअल फ़ंड्स की ग्रोथ जारी रहने की संभावना है.
सरकार द्वारा रिटेल निवेशकों को आकर्षित करने के लिए नई नीतियां आ सकती हैं.
नए प्रकार के थीमैटिक और इंटरनेशनल फ़ंड्स को और लोकप्रियता मिलेगी.
निष्कर्ष
म्यूचुअल फ़ंड निवेश के लिए एक आकर्षक और प्रबंधन में आसान विकल्प साबित हो रहा है. ये विकल्प उन निवेशकों के लिए उपयुक्त है जो विभिन्न एसेट्स (जैसे इक्विटी, डेट और हाइब्रिड) में डायवर्सिफ़िकेशन लाकर अपने जोख़िम को कम करना चाहते हैं. म्यूचुअल फ़ंड का प्रबंधन एक्सपर्ट्स के हाथ में होता है, इसलिए इसके ज़रिये छोटे और बड़े निवेशक बिना जटिलता के निवेश कर पाते हैं. SIP हर आय वर्ग के लिए इसमें निवेश को आसान बनाती है.
म्यूचुअल फ़ंड में लंबे समय के निवेश से न केवल वेल्थ तैयार करने में मदद मिलती है, बल्कि ELSS जैसे टैक्स सेविंग विकल्पों के माध्यम से टैक्स भी बचाया जा सकता है. हालांकि, ये समझना ज़रूरी है कि सभी प्रकार के म्यूचुअल फ़ंड में जोख़िम होता है, इसलिए निवेशक को अपने फ़ाइनेंशियल गोल्स, जोख़िम उठाने की क्षमता और निवेश की अवधि का सही एनालेसिस करना चाहिए.
अंत में, म्यूचुअल फ़ंड उन लोगों के लिए निवेश का एक अच्छा विकल्प है, जो पेशेवर प्रबंधन के माध्यम से बाज़ार में भाग लेना चाहते हैं. यदि नियमित रूप से निवेश और अनुशासन का पालन किया जाए, तो म्यूचुअल फ़ंड भविष्य में वित्तीय सुरक्षा और गोल्स को प्राप्त करने का एक प्रभावी साधन साबित हो सकता है.
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ये लेख पहली बार अक्तूबर 28, 2024 को पब्लिश हुआ.