Anand Kumar
कुछ दिन पहले, मुझे 'NJ फ़ैक्टर इन्वेस्टिंग ओलंपियाड 2024' को जज करने का मौक़ा मिला. अंतिम दौर में आठ टीमें शामिल थीं, जिनमें से ज़्यादातर जाने-माने बिज़नस स्कूलों से थीं, और अंतिम विजेता IIM-A की टीम रही. आप www.njfio.com से इस प्रतियोगिता के बारे में ज़्यादा जानकारी पा सकते हैं. संक्षेप में कहें, तो फ़ैक्टर इन्वेस्टिंग निवेश करने का ऐसा तरीक़ा है जिसमें कुछ कारकों या फ़ैक्टर्स के आधार पर सिक्योरिटीज़ का चुनाव करना होता है, जिनके बारे में माना जाता है कि ये फ़ैक्टर रिटर्न को प्रभावित करते हैं. इन फ़ैक्टर्स में वैल्यू, साइज़, मोमेंटम, क्वालिटी और मार्केट के उतार-चढ़ाव जैसी बातें शामिल हो सकती हैं. ये बातें कोई भी अनुभवी निवेशक समझ जाएगा, लेकिन यहां बड़ा अंतर ये है कि इसमें स्टॉक का चुनाव करते हुए किसी व्यक्ति के निजी फ़ैसलों की कोई भूमिका नहीं होती.
फ़ैक्टर इन्वेस्टिंग, नियम पर आधारित, एल्गोरिदम इन्वेस्टिंग का एक आकर्षक नाम है. निवेशक का काम अपनी समझ और रिसर्च के आधार पर नियम तय करना है. इसके लिए वे कई विकल्पों को आज़मा सकते हैं और बैकटेस्ट (बीते समय के आधार पर किया गया टेस्ट) कर सकते हैं, लेकिन नियम तय हो जाने के बाद निजी फ़ैसलों के लिए कोई जगह नहीं होती. कम-से-कम सिद्धांत के स्तर पर नहीं. इस प्रतियोगिता के अंत में भले ही केवल एक विजेता रहा, पर सभी फ़ाइनलिस्ट ने ऐसे फ़ैक्टर सेट बनाए थे, जिसमें पिछले पंद्रह साल के बैकटेस्ट में उनके निवेश का प्रदर्शन अच्छा रहा. ये देखते हुए कि सभी प्रतियोगी युवा छात्र थे, उनके विचार और काम करने का तरीक़ा प्रभावशाली था.
मगर, हमेशा की तरह किसी भी प्रतियोगिता या सिमुलेशन में महत्वपूर्ण सवाल ये होता है कि गमले में अच्छी तरह से उगने वाला पौधा जंगल में भी पनपेगा या नहीं. मैं कहूंगा कि बैकटेस्ट के बीच सबसे बड़ा फ़ैक्टर जो असल ज़िंदगी में बदल जाता है वो निवेशक का मनोविज्ञान है. जब आपका असली पैसा और भविष्य दांव पर होता है, तब चीज़ें अलग होती हैं. वास्तविक पैसे को दांव पर लगाने की भावनात्मक और मानसिक चुनौतियां बैकटेस्ट या सिमुलेशन के नियंत्रित वातावरण से बहुत अलग हो सकती हैं. जब निवेशक की अपनी पूंजी दांव पर लगी होती है, तो प्रदर्शन करने का दबाव बहुत ज़्यादा हो सकता है. पैसे खोने का डर, मार्केट में उतार-चढ़ाव के दौरान अपनी रणनीति से भटकने का लालच, और अनिश्चित दौर में अनुशासन बनाए रखने की मुश्किल, ये सभी सबसे अच्छी तरह से डिज़ाइन की गई फ़ैक्टर्स पर आधारित निवेश की रणनीतियों पर भी भारी पड़ सकते हैं.
मैं ख़ासतौर से इस प्रतियोगिता के बारे में बात नहीं कर रहा हूं और न ही उन तमाम निवेशकों पर टिप्पणी कर रहा हूं जो सोशल मीडिया पर बड़ी सफलता के सबूत पेश करते हैं. हमारे पास कई सालों से अच्छे इक्विटी बाज़ार और मज़बूती से बढ़ती अर्थव्यवस्था रही है. असलियत ये है कि ऐसे समय में, बहुत सारी रणनीतियां अच्छा प्रदर्शन करती हैं. इसका सबूत देखने के लिए आपको अलग-अलग म्यूचुअल फ़ंड्स का प्रदर्शन देखना होगा. वास्तव में, एक निवेशक को ख़राब प्रदर्शन करने के लिए सक्रिय रूप से कुछ मूर्खतापूर्ण करना होता है. हालांकि, ये कहना लुभावना लगता है कि निवेशक पहले से ज़्यादा जानकार हो गए हैं. असल बात तो ये है कि बाज़ार लंबे समय से अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं. बाज़ार में एक पुरानी कहावत है, 'चढ़ती हुई लहरें सभी नावों को ऊपर उठा देती हैं'. इसलिए असली टेस्ट तो तब होता है जब लहरें उतरने लगती हैं.
अनुभवी निवेशक ख़ुद को उन लोगों से अलग करते हैं जिन्होंने बाज़ार में सिर्फ़ वक़्त बिताया है, क्योंकि उन्हें इस बात का गहरा अहसास होता है कि बाज़ार के रुझान, चाहे कितने ही मज़बूत क्यों न दिखें, अंततः अस्थायी होते हैं. उनका व्यापक अनुभव और बाज़ार का पिछला व्यवहार उन्हें लगातार याद दिलाता है कि जो ऊपर जाता है, उसे नीचे भी आना चाहिए और इसी तरह इसका उलटा भी होता है. ये समझ उन्हें हमेशा बाज़ार के बदलते परिदृश्य में एक संतुलित नज़रिए के साथ काम करने की समझ देती है.
हालांकि, निवेश में सफलता की चाभी केवल मार्केट के चक्र या साइकल को समझने में नहीं है, बल्कि इसे लेकर अपनी मनोवैज्ञानिक प्रतिक्रिया को मैनेज करने में भी है. जैसे-जैसे बाज़ार अपने अलग-अलग स्टेज से गुज़रता है, निवेशक उसके मुताबिक़ मनोवैज्ञानिक साइकल से गुज़रते हैं. इन व्यक्तिगत मनोवैज्ञानिक फ़ेज़ को पहचानने और असरदार ढंग से मैनेज करने की क्षमता ही एक निवेशक की वित्तीय सफलता और उनके लंबे समय में वित्तीय उद्देश्यों को हासिल करने की क्षमता तय करती है. कुल मिला कर, बाज़ार में उतार-चढ़ाव को लेकर अपनी भावनात्मक प्रतिक्रिया को नियंत्रित करना उतना ही ज़रूरी है जितना बाज़ार और उसे नियंत्रित करने वाले फ़ैक्टर्स को समझना है.
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