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General elections Impact on stock market: भारतीय मार्केट उथल-पुथल मचाने के लिए मशहूर हैं. कभी-कभी, ग़लत ख़बरें भी कुछ समय के लिए बड़ा असर करती हैं. मार्केट का ऐसा व्यवहार देखते हुए, आम चुनाव तो निश्चित रूप से मार्केट के लिए एक बड़ी बात हैं और चुनाव पर बड़ा असर डाल सकते हैं.
2024 के आम चुनाव पूरे ज़ोरों पर है. कई निवेशक इस बात को लेकर उलझन में हैं कि मार्केट किस तरफ़ करवट लेगा, और वे किसी साफ़ संकेत की तलाश में हैं. हम नीचे दिए गए तीन सवालों का ज़वाब देकर निवेशकों की उलझन दूर करने की कोशिश करेंगे.
पहला सवाल: क्या आम चुनाव मार्केट पर असर डालते हैं?
दुर्भाग्य से, इस सवाल का कोई सटीक ज़वाब नहीं है. साल 2004 में, चुनावी नतीजों से पहले और बाद में मार्केट में गिरावट आई. शायद सोनिया गांधी के नेतृत्व वाले यूनाइटेड प्रोग्रेसिव एलायंस (UPA) की जीत ने ज़्यादातर चुनावी पंडितों को भ्रमित कर दिया था.
पांच साल बाद, मार्केट ने एक दिन में 17.3 फ़ीसदी की बढ़त के साथ सरकार में स्थिरता का जश्न मनाया. बाद के महीनों में भी मार्केट ने उत्साह बरक़रार रखा.
2014 और 2019 के चुनावों में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाले नेशनल डेमोक्रेटिक एलायंस (NDA) को भारी जीत मिली. लेकिन मार्केट में हलचल कम रही, क्योंकि इस जीत की उम्मीद पहले से ही थी और मार्केट पहले ही मूवमेंट दिखा चुका था.
कुल मिलाकर, इस बात का कोई साफ़ पैटर्न नहीं है कि वोटिंग के दौरान और उसके बाद मार्केट किस तरह की प्रतिक्रिया देता है. फिर भी अगर कोई मार्केट के व्यवहार का अनुमान लगाना चाहे, तो उसे इस बात को ध्यान में रखना होगा कि चुनावी नतीजे हैरानी भरे होंगे या नहीं.
दूसरा सवाल: चुनाव के बाद कौन से सेक्टर अच्छा प्रदर्शन करते हैं?
इसका भी कोई सटीक ज़वाब नहीं है. इस मामले में, हरेक चुनाव ने एक अलग सेक्टर को लीडर बनाया है. 2004 में, ये लीडर IT सेक्टर था; 2009 में ऑटो सेक्टर ने बाज़ी मारी; पांच साल बाद फ़ार्मा ने मार्केट पर राज किया; और फ़ाइनेंशियल सर्विस सेक्टर पिछले चुनावों में टॉप पर रहा. ये बिल्कुल अजीब बात है कि 2014 के चुनावों में विजेता रहा फ़ार्मा सेक्टर पांच साल बाद काफ़ी निचली पायदान पर था. कुल मिलाकर, चुनाव के वक़्त अगले सेक्टर लीडर की भविष्यवाणी करना म्यूज़िकल चेयर के खेल जैसा है.
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तीसरा सवाल: क्या आपको SIP शुरू करनी/ ज़ारी रखनी चाहिए?
ऊपर दिए गए दो मामलों में भले ही स्थिति धुंधली हो, पर इस सवाल का ज़वाब बिल्कुल साफ़ 'हां' है. चाहे किसी भी पार्टी की सरकार बने, आप अनुमान लगाने के बजाय अपना नया निवेश शुरू करें या पिछला ज़ारी रखें.
ऐसा करने से आप लॉन्ग-टर्म एक डबल-इंजन बूस्टर पर बैठे होंगे, क्योंकि इक्विटी म्युचुअल फ़ंड लॉन्ग-टर्म में अच्छा प्रदर्शन करते हैं और आप भारत की ग्रोथ स्टोरी का मुख्य हिस्सा भी बनेंगे.
आंकड़े गवाह हैं
आइए सबसे पहले मार्च 2014 और मार्च 2024 के बीच सेंसेक्स के लॉन्ग-टर्म प्रदर्शन पर नज़र डालें. इस दौरान अगर आपने सेंसेक्स में अपना निवेश पांच साल तक ज़ारी रखा होगा, तो मंथली रोलिंग के आधार पर नेगेटिव रिटर्न मिलने का सवाल ही पैदा नहीं होता. असल में, आपको दो-तिहाई बार 12 फ़ीसदी से ज़्यादा का रिटर्न मिला होगा. दूसरी ओर, अगर आपने निवेश को सिर्फ़ एक महीने के लिए रखा होगा, तो नेगेटिव रिटर्न मिलने की संभावना 38 फ़ीसदी तक बढ़ जाती है.
अगर भारत की ग्रोथ स्टोरी पर नज़र डालें, तो अर्थव्यवस्था में काफ़ी तेज़ी आई है. हम 2022 में ब्रिटेन को पछाड़कर दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गए. अमेरिका स्थित कैपिटल मार्केट फ़र्म जेफ़रीज़ के मुताबिक़, अगले चार साल भी इसी तरह की तेज़ी रहेगी. फ़र्म को उम्मीद है कि भारत 2027 तक जर्मनी और जापान को पछाड़कर तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा.
भारत का लॉन्ग-टर्म भविष्य साफ़ तौर से उज्ज्वल दिखाई दे रहा है. इसलिए, संयम बनाए रखें और भारत और इक्विटी मार्केट की लॉन्ग-टर्म क्षमता का फ़ायदा उठाएं.
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