जब बाज़ार में मुश्किलें बढ़ जाती हैं, तो MLD (बाज़ार से जुड़े डिबेंचर) धड़ल्ले से चल पड़ते हैं. कम से कम वेल्थ और रिलेशनशिप मैनेजर तो यही दावा करते हैं.
बेचने वालों की मानें, तो MLD दोनों दुनियाओं के आनंद का दावा पेश करते हैं. यानी, डेट इन्वेस्टमेंट की सुरक्षा और इक्विटी जैसे रिटर्न. जब मार्केट मंदी पर होता है, तो ये आपका कैपिटल सुरक्षित रखते हैं; और तेज़ी के समय में, ऊंचा रिटर्न भी देते हैं, हालांकि आप इनसे कितना कमा सकते हैं इसकी एक सीमा है.
आइए मौजूदा MLD में से एक के बारे में बात करते हैं, जो दो साल में अपने इंडेक्स के 1.5 गुना रिटर्न का वादा करता है. अगर इंडेक्स 22 प्रतिशत बढ़ता है, तो निवेशकों को दो साल में 33 प्रतिशत का फ़ायदा होगा. ये वो अधिकतम रक़म है जो एक निवेशक कमा सकता है. भले ही इंडेक्स 50 प्रतिशत बढ़ जाए, फिर भी एक निवेशक 33 प्रतिशत ही कमाता है.
इसके उलट अगर फ़ॉलो किए जाने वाला इंडेक्स गिरता है, तो निवेशक कम से कम अपने मूल निवेश की भरपाई कर सकता है.
मगर, ये सब उतना भी बढ़िया नहीं है.
इनमें आपके एसेट तो 33 प्रतिशत तक बढ़ सकते हैं, पर ये दो साल का कुल (absolute) रिटर्न है. सालाना रिटर्न कहीं ज़्यादा कम है, जो क़रीब 15.3 प्रतिशत है.
दूसरे शब्दों में, MLD के ज़रिए आप ज़्यादा से ज़्यादा 15.3 प्रतिशत ही कमा सकते हैं, भले ही इंडेक्स कितना भी अच्छा प्रदर्शन करे. दरअसल, इस में कुछ ख़ामियां और भी हैं.
शुरुआत महंगी है: शुरुआत के लिए, आपको इनमें इन्वेस्ट करने के लिए कम से कम एक लाख रुपये की ज़रूरत होगी.
जी हां, ये डेट सिक्योरिटी है. MLD को एक तरह का लोन समझना चाहिए, जो आप कंपनियों या फ़ाइनेंशियल इंस्टीट्यूशन को देते हैं, हालांकि ये सीधे नहीं दिया जाता, बल्कि प्राइवेट प्लेसमेंट के ज़रिए दिया जाता है. फ़ाइनेंशियल इंस्टीट्यूशन आपके पैसे से बने फ़ंड का इस्तेमाल प्राइवेट कंपनियों को लोन देने के लिए करते हैं. फ़ाइनेंशियल इंस्टीट्यूशन को दिया गया ये लोन, क़रीब 1 से 5 साल तक चलता है.
रिफ़ंड की मारामारी: MLD रिस्की हो सकता है. चूंकि फ़ंड का एक बड़ा हिस्सा ख़राब क्रेडिट रेटिंग वाली प्राइवेट कंपनियों को उधार दिया जाता है, इसलिए डिफ़ॉल्ट की संभावना ज़्यादा होती है. अगर ऐसा होता है, तो आपको अपना मूल निवेश वापस पाने के लिए ऊपर वाले से प्रार्थना की ज़रूरत पड़ सकती है.
इसके अलावा, इनमें से ज़्यादातर सिक्योरिटीज़ प्रिंसिपल- प्रोटेक्टेड MLD होती हैं, मगर अनजाने में आपको कुछ असुरक्षित भी मिल सकती हैं, जो मूल निवेश लौटाने की कोई गारंटी नहीं देतीं.
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टैक्स का आंतक: टैक्स लगाने वाले भी इसे लेकर कोई कसर नहीं छोड़ते. अतीत में जहां लॉन्ग-टर्म कैपिटल गेन पर 10 प्रतिशत का कम टैक्स रेट लगता था, वहीं अब, MLD से होने वाली कमाई, निवेशकों को अपने रेगुलर इनकम टैक्स स्लैब के मुताबिक़ टैक्स देना होता है, फिर होल्डिंग पीरियड चाहे जो भी हो. इसलिए, अगर आप 30 प्रतिशत के टैक्स ब्रैकेट में आते हैं, तो आपके लाभ पर भी इसी रेट से टैक्स लगाया जाएगा.
इससे भी बुरा ये है कि ब्याज की आमदनी पर 10 प्रतिशत टैक्स है. ये इनकम मिलने के समय ही काट लिया जाता है.
लंबे समय के लिए सही नहीं: हालांकि सबसे अच्छे परिदृष्य में, ये सालाना क़रीब 15.3 प्रतिशत रिटर्न देता है, मगर MLD का मैच्योरिटी पीरियड आमतौर पर कम होता है, क़रीब दो साल, इसलिए लंबे समय की फ़ाइनेंशियल प्लानिंग के लिए ये उतना सही नहीं है.
हमारी राय
MLD एक डेट (debit) निवेश का विकल्प है. इस डेट की दुनिया में आप रिटर्न का पीछा नहीं करते हैं. ऐसा इसलिए, क्योंकि ज़्यादा रिटर्न का मतलब है कि रिस्क भी ज़्यादा होगा. और डेट इन्वेस्टमेंट का सार है - स्थिरता और कैपिटल प्रिजर्वेशन - रिस्क नहीं.
अगर आपको अपने निवेश के साथ रिस्क लेना ही है, तो इक्विटी और इक्विटी-ओरिएंटेड निवेशों के विकल्प देखें.
आप क्या करें
कम से कम पांच साल में सेफ़्टी और मार्केट एक्सपोज़र का बैलेंस चाहने वाले निवेशकों के लिए अग्रेसिव हाइब्रिड म्यूचुअल फ़ंड बेहतर विकल्प हैं.
मीडियम अग्रेसिव हाइब्रिड ने केवल तीन साल में 16.2 प्रतिशत का रिटर्न दिया है, जो न केवल MLD के 15.3 प्रतिशत के सबसे ऊंचे रिटर्न से ज़्यादा है, बल्कि शेयर बाज़ार में भागीदारी और नकारात्मक पक्ष से सुरक्षा का मिश्रण भी देता करता है.
इसके अलावा, इन फ़ंड्स को टैक्स के लिए इक्विटी निवेश के ती तरह ही समझा जाता है, जो उन्हें MLD की तुलना में ज़्यादा टैक्स के लिहाज़ से फ़ायदेमंद बना देता है.
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