इंश्योरेंस

30 दिन में मिलनी चाहिए लाइफ इन्‍श्‍योरेंस क्‍लेम की रकम

क्‍लेम में देरी होने पर बीमा कंपनी को क्‍लेम की रकम पर बैंक रेट से 2 फीसदी अधिक ब्‍याज देना होता है

 

आपके पास लाइफ इन्‍श्‍योरेंस पॉलिसी है या आप खरीदने पर विचार कर रहे हैं तो आपके लिए क्‍लेम फाइल करने का प्रॉसेस समझना जरूरी है। खास कर लाइफ इन्‍श्‍योरेंस पॉलिसी के नॉमिनी के लिए यह समझना बहुत जरूरी है। क्‍योंकि पॉलिसी धारक की मौत होने पर नॉमिनी को ही क्‍लेम फाइल करना होता है और बीमा कंपनी क्‍लेम की रकम का भुगतान उसी को करती है।

क्‍लेम फाइल करने का प्रॉसेस और जमा कराए जाने वाले डाक्‍युमेंट के बारे में जानने से आप कई तरह की मुश्किलों से बच सकते हैं। लेकिन क्‍या आप जानते हैं कि इन्‍श्‍योरेंस क्‍लेम की रकम आप आसानी से हासिल कर सके इसके लिए बाजार नियामक ने एक समय सीमा तय की है। इस समय सीमा के अंदर क्‍लेम का भुगतान न होने पर बीमा कंपनियों को जुर्माना देना पड़ता है। बीमा नियामक ने प्रोटेक्‍शन ऑफ पॉलिसी होल्‍डर्स इंट्रेस्‍ट्स रेग्‍युलेशल ऑफ 2017 के तहत यह समय सीमा तय की है। हम आपको इसके बारे में पूरी जानकारी दे रहे हैं।

सबसे पहले क्‍लेम फॉर्म की फाइलिंग से शुरू करते हैं। क्‍लेम फॉर्म आप बीमा कंपनी की वेबसाइट से डाउनलोड कर सकते हैं। इसके अलावा आप बीमा एजेंट या बीमा कंपनी के कार्यालय से ले सकते हैं। क्‍लेम फॉर्म में आपको पॉलिसी नंबर और पॉलिसी धारक की मौत की डेट, समय और मौत का कारण भरना होता है। इसके अलावा नॉमिका का नाम और बैंक अकाउंट डिटेल भरनी होती है। क्‍लेम फॉर्म के अलावा नॉमिनी को सपोर्टिंग डाक्‍युमेंट जैसे ओरिजिनल पॉलिसी पेपरपेपर, डेथ सर्टिफिकेट और नेचुरल डेथ के मामले में मेडिकल रिकॉर्ड जमा कराना होता है।

 

पॉलिसी धारक की अस्‍वाभाविक मौत जैसे दुर्घटना में मौत, हत्‍या और आत्‍महत्‍या के मामलों में अतिरिक्‍त डाक्‍युमेंट जैसे फर्स्‍ट इन्‍फॉर्मेशन रिपोर्ट और पोस्‍टमॉर्टम रिपोर्ट भी अटैच करनी होती है।

इसके अलावा नॉमिनी को बीमा कंपनी के पास अपनी नो योर कस्‍टमर डिटेल भी जमा करानी होती है। यह बात ध्‍यान में रखनी चाहिए कि प्राकृतिक आपदा होने पर बीमा कंपनियां इनमें से कुछ डाक्‍युमेंट जमा कराने की शर्त को रिलैक्‍स कर देती हैं।

नियमों के तहत जीवन बीमा कंपनी को क्‍लेम का भुगतान बिना किसी देरी के करना होता है। अगर उनको किसी तरह की जांच करनी है तो उनको यह जांच एक साथ करनी होती है न कि टुकड़ों में। बीमा कंपनियों को यह जांच क्‍लेम रिसीव करने के 15 दिन के अंदर करनी होती है। सभी डाक्‍युमेंट और जरूरी स्‍पष्‍टीकरण रिसीव करने की डेट से 30 दिन के अंदर बीमा कंपनी को क्‍लेम का भुगतान करना होता है या क्‍लेम रिजेक्‍ट करना होता है।

 

लेकिन अगर बीमा कंपनी को लगता है कि इस मामले में और जांच की जरूरत है तो वह 90 दिन का समय ले सकता है। और यह 90 दिन क्‍लेम रिसीव करने की डेट से शुरू होता है। इसके बाद उसे 30 दिन के अंदर क्‍लेम का निस्‍तारण करना होता है।

 

समय सीमा का उल्‍लंघन करने पर बीमा कंपनी को जुर्माना भी देना होता है। क्‍लेम का भुगतान होने में देरी पर बीमा कंपनी को आखिरी जरूरी डाक्‍युमेंट रिसीव करने की डेट से क्‍लेम की रकम पर बैंक रेट से 2 फीसदी अधिक ब्‍याज का भुगतान करना होगा। यानी अगर आपने क्‍लेम के लिए सभी जरूरी डाक्‍युमेंट जमा करा दिए हैं फिर भी बीमा कंपनी 35 दिन के बाद क्‍लेम का निस्‍तारण करती है तो बीमा कंपनी 5 दिन के लिए नहीं 35 दिन के लिए जुर्माना देगी।

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ये लेख पहली बार फ़रवरी 05, 2018 को पब्लिश हुआ.

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