एक लाइफ इन्श्योरेंस पॉलिसी इन्श्योरेंस कंपनी और इन्श्योर्ड यानी बीमा खरीदने वाले व्यक्ति के बीच कॉंट्रैक्ट है। इस कॉंट्रैक्ट के तहत इन्श्योरेंस कंपनी पॉलिसी की अवधि में इन्श्योर्ड की मौत होने पर एक तय सम अश्योर्ड या एक तय रकम भुगतान करने पर सहमति जताती है। अगर आप नौकरी या बिजनेस करते हैं और आपके परिवार के लोग आपकी आय पर निर्भर हैं तो आपके लिए लाइफ इन्श्योरेंस पॉलिसी लेना जरूरी है।
सबसे अच्छा लाइफ इन्श्योरेंस टर्म प्लान
लाइफ इन्श्योरेंस लेने का सबसे किफायती तरीका टर्म प्लान खरीदना है। टर्म प्लान के अलावा दूसरे तरह के लाइफ इन्श्योरेंस प्लान में इन्श्योरेंस के साथ इन्वेस्टमेंट भी होता है, जो प्लान को बेहद महंगा बना देता है। टर्म प्लान में आपको सिर्फ इन्श्योरेंस की कीमत देनी होती है। इसलिए यह सबसे सस्ते इन्श्योरेंस प्रोडक्ट होते हैं। अगर टर्म प्लान की अवधि में इन्श्योर्ड की मौत हो जाती है तो नॉमिनी को सम अश्योर्ड का पूरा पैसा मिल जाता है। वहीं अगर आप प्लान की अवधि पूरी होने तक जीवित रहते जाते हैं तो आपको कुछ नहीं मिलेगा। आपके लिए इन्श्योरेंस क्लेम फाइल करने के प्रॉसेस के बारे में जानना जरूरी है जिससे आप अपने परिजनों को बता सकें कि जरूरत पड़ने पर क्लेम कैसे फाइल करना है।
जरूरी डाक्युमेंट
सबसे पहले नॉमिनी को क्लेम फॉर्म भरना होता है। क्लेम फॉर्म इन्श्योरेंस कंपनी की वेबसाइट से डाउनलोड किया जा सकता है या एजेंट से लिया जा सकता है। इसके अलावा क्लेम फॉर्म इन्श्योरेंस कंपनी के ऑफिस में भी उपलब्ध होता है। क्लेम फॉर्म में पॉलिसी नंबर, पॉलिसी होल्डर की मौत की डेट और समय, मौत का कारण, नॉमिनी का नाम, नॉमिनी की बैंक अकाउंट डिटेल और पॉलिसी होल्डर के नाम पर किसी और पॉलिसी की डिटेल देनी होती है।
इसके अलावा नॉमिनी को ओरिजनल पॉलिसी पेपर, पॉलिसी होल्डर का डेथ सर्टिफिकेट और बीमारी की वजह से मौत होने पर मेडिकल डेथ समरी जैसे डाक्युमेंट भी जमा कराने होते हैं। अगर पॉलिसी होल्डर की मौत एक्सीडेंट में हुई है तो फर्स्ट इन्फॉर्मेशन रिपोर्ट (एफआईआर) और पोस्ट मॉर्टम रिपोर्ट भी अटैच करनी होती है। इसके अलावा नॉमिनी को अपनी नो योर कस्टमर (केवाईसी) डिटेल भी मुहैया करानी होती है। किसी तरह की आपदा आने पर इन्श्योरेंस कंपनी इन डाक्युमेंट को जमा कराने से छूट दे सकती है और नॉमिनी को सिर्फ पॉलिसी होल्डर की मौत का सबूत देना होता है। यह सबूत सरकार, हॉस्पिटल या म्युनिसिपल रेकॉर्ड से होना चाहिए।
क्लेम मिलने में लगेगा कितना समय
नियमों के तहत सभी जरूरी डाक्युमेंट मिलने के 30 दिन के अंदर क्लेम का सेटेलमेंट होना चाहिए। इन्श्योरेंस कंपनी किसी बात पर क्लैरीफिकेशन या सपोर्टिंग डाक्युमेंट मांग सकती है। अगर ऐसा होता है तो क्लेम की प्रक्रिया शुरू होने की तिथि से छह माह के अंदर क्लेम का सेटेलमेंट होना चाहिए।
किन वजहों से रिजेक्ट हो सकता है क्लेम
आपके लिए जरूरी है कि आप प्रपोजल फॉर्म बिल्कुल सही तरीके से भरें। इन्श्योरेंस लॉज अमेंडमेंट एक्ट, 2015 के तहत बनाए गए नय नियम कस्टमर के पक्ष में हैं लेकिन आपको प्रपोजल फॉर्म भरते समय सही जानकारी देनी होगी। नए नियमों में कहा गया है कि पॉलिसी शुरू होने की तिथि से तीन साल के बाद फाइल किए गए सभी क्लेम का अनिवार्य रूप से भुगतान होना चाहिए। लेकिन अगर पॉलिसी शुरू होने की तिथि से तीन साल की अवधि से कम कम समय में फाइल होने वाले क्लेम की कड़ी स्क्रूटनी हो सकती है और इन्श्योरेंस कंपनियां ऐसे क्लेम को रिजेक्ट भी कर सकती हैं। आम तौर पर इन्श्योरेंस कंपनी फ्रॉड या जरूरी जानकारी का खुलाना न होने पर ही क्लेम रिजेक्ट करती है।
ये लेख पहली बार अगस्त 04, 2016 को पब्लिश हुआ.