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क्‍यों रिजेक्‍ट हो जाता है इन्‍श्‍योरेंस क्‍लेम

अगर आप चाहते हैं कि आपका इन्‍श्‍योरेंस क्‍लेम रिजेक्‍ट न हो तो आपको सतर्क रहना होगा

क्‍यों रिजेक्‍ट हो जाता है इन्‍श्‍योरेंस क्‍लेम

हम इन्‍श्‍योरेंस इसलिए खरीदते हैं कि बीमा कंपनी हमारे क्‍लेम का भुगतान करे। अगर ऐसा नहीं होता है तो हमें बेहद बुरा लगता है। आदर्श स्थिति यह होती है कि इन्‍श्‍योरेंस कंपनी कस्‍टमर को आसान शब्‍दों में पॉलिसी की शर्तो के बारे में बताए। पॉलिसी खरीदने वाला पॉलिसी के सभी डाक्‍युमेंट्स को ठीक तरह से पढ़े ओर जाने कि वह क्‍या खरीद रहा है। इन्‍श्‍योरेंस क्‍लेम फाइल करने की प्रक्रिया सरल हो। इन्‍श्‍योरेंस कंपनी के कस्‍टमर सर्विस एग्‍जीक्‍यू‍टिव का रवैया मददगार हो और वे पॉलिसी होल्‍डर से क्‍लेम का पैसा उनके अकाउंट में ट्रांसफर करने के लिए बैंक डिटेल मांगें। लेकिन वास्‍तविकता में शायद ही कभी ऐसा होता है।

मैने हाल में स्‍टीवन स्‍पीलबर्ग की एक फिल्‍म ब्रिज ऑफ स्‍पाइस देखी है। यह फिल्‍म कोल्‍ड वार के दौरान एक इन्‍श्‍योरेस लॉयर के बारे में है जिसने अपनी मोलभाव की शानदार स्किल का इस्‍तेमाल करते हुए अमेरिका के लिए रूस और क्‍यूबा के साथ जबर्दस्‍त डील की थी। फिल्‍म देखने के बाद मैने सोचा कि काश ऐसा इन्‍श्‍योरेंस सेटलमेंट लॉयर हमारे इन्‍श्‍योरेंस होल्‍डर्स के लिए पैरवी करता। हमारे देश में क्‍लेम रिजेक्‍ट होने की दर काफी अधिक है। जब तक पॉलिसी होल्‍डर की शिकायतों का समाधान करने के लिए मजबूत सिस्‍टम नहीं बन जाता तब तक हमे इन्‍श्‍योरेंस रिजेक्‍ट होने के कारणों को समझना होगा। इन्‍श्‍योरेंस क्‍लेम रिजेक्‍ट होने को लेकर सार्वजनकि तौर पर बहुत कम जानकारी उपलब्‍ध है।  क्‍लेम रिजेक्‍ट होने के अहम कारणों का पता लगाने के लिए मैने सैकड़ो क्‍लेम का अध्‍ययन किया है।

हेल्‍थ इन्‍श्‍योरेंस

हेल्‍थ इन्‍श्‍योरेंस क्‍लेम इसलिए रिजेक्‍ट कर दिया जाता है क्‍योंकि हॉस्पिटलाइजेशन प्री एक्जिसटिंग डिजीज की वजह से हुआ था। और पॉलिसी लेते समय इस प्री एक्जिसटिंग डिजीज का खुलासा नहीं किया गया था।

डिजीज प्री एक्जिसटिंग है यह डॉक्‍टर की केस हिस्‍ट्री से पता चलता है। अगर इन्‍श्‍योरेंस कंपनी को शक होता है तो वे हॉस्पिटल और सर्जिकल नोट मांगते हैं।हैं। इस तरीके से वे मरीज का मेडिकल बैकग्राउंड पता करते हैं। इससे सच में पता चलता है कि डिजीज प्री एक्जिसटिंग थी कि नहीं। ऐसी डिजीज जो छिपी होती हैं उनमें हाइपरटेंशन, डायबिटीज, इंटरनल सिस्‍ट और मिर्गी जैसी न्‍यूरो से जुड़ी बीमारियां शामिल हैं। अच्‍छी दवाओं के ज‍रिए हाइपरटेंशन को छिपाया जा सकता है। इसी तरह से डायबिटीज को भी छिपाया जा सकता है। जब क्‍लेम रिजेक्‍ट हो जाता है तो मरीज नाराज होता है ले‍किन अक्‍सर जानबूझ कर प्री एक्जिसटिंग डिजीज को छिपाने का प्रयास किया जाता है। वहीं इन्‍श्‍योरेंस कंपनियां अपनी तरफ से ज्‍यादातर डिजीज को प्री एक्जिसटिंग साबित करने का प्रयास करती हैं। कई बार ऐसी स्थिति भी होती है जब डॉक्‍टर शुगर जैसी डिजीज की डायग्‍नोसिस को लेकर कमेंट करता है और इसकी वजह से क्‍लेम रिजेक्‍ट हो जाता है।

कई मामलों में हास्पिटलाइजेशन का कारण स्‍पष्‍ट नहीं होता है। उदाहरण के लिए क्‍या हीमोग्‍लोबीन में तेज गिरावट प्री एक्जिसटिंग पाइल्‍स की वजह से थी हाल में सामने आए अल्‍सर की वजह से ? ऐसे में जब इन्‍श्‍योरेंस कंपनी अपने पक्ष में राय रखती है तो उसे समझाना बहुत मुश्किल हो जाता है। लाइफ इन्‍श्‍योरेंस और ओवरसीज ट्रैवेल क्‍लेम भी प्री एक्जिसटिंग मेडिकल समस्‍याओं का खुलासा न किए जाने के कारण रिजेक्‍ट किए जाते हैं।

मोटर इन्‍श्‍योरेंस

मोटर इन्‍श्‍योरेंस में क्‍लेम ज्‍यादातर लापरवाही की वजह से रिजेक्‍ट किए जाते हैं। क्‍या आप ने चाबी कार में छोड़ दी। क्‍या आपने ऐसे समय इंजन स्‍टॉर्ट किया जब रोड पर जलभराव था। क्‍या आपने एक्‍सपायर हो चुके लाइसेंस के साथ गाड़ी ड्राइव की। क्‍या आप कार ड्राइव करते समय शराब पी रहे थे। हाल में क्‍वेश्‍चन एंड ऑन्‍सर वेबसाइट क्‍वेरा पर किसी ने मुझसे कार में स्‍टील मी लिख कर नोट छोड़ने और कार चोरी हो जाने के नतीजों के बारे में पूछा। हालांकि मोटर इन्‍श्‍योरेंस में उकसावे को एक्‍सक्‍लूड नहीं किया गया है लेकिन मुझे नहीं लगता है कि इस मामले में इन्‍श्‍योरेंस कंपनी क्‍लेम का भुगतान करेगी। इन्‍श्‍योरेंस कंपनी पुलिस या मेडिको लीगल रिपोर्ट से लापरवाही के संकेत पकड़ती है। एक्‍सीडेंट को लेकर आपका जो भी बयान हो वह इन्‍श्‍योरेंस कंपनी, सर्वेयर, इन्‍वेस्‍टीगेटर सबके सामने एक समान होना चाहिए। इसमें अंतर नहीं होना चाहिए।

मोटर इन्‍श्‍योरेंस में क्‍लेम रिजेक्‍ट होने का एक और कारण यह होता है कि इन्‍श्‍योरेंस पर्सनल यूज के लिए था और व्‍हीकल कमर्शियल यूज में थो। होम इन्‍श्‍योरेंस क्‍लेम सामान्‍य टूट फूट, पानी टपकने और शार्ट सर्किट से जुडे एक्‍सक्‍लूजंस की वजह से रिजेक्‍ट हो जाते हैं। शार्ट सर्किट की वजह से आग लगने, सीलन की वजह से दीवाल को नुकसान होने के मामले में क्‍लेम आम तौर पर रिजेक्‍ट हो जाता है। इसके अलावा कई और वजहों से भी मोटर इन्‍श्‍योरेंस क्‍लेम रिजेक्‍ट होता है। जैसे आपने होम इन्‍श्‍योरेंस कराया है और आपने इसमें बेसमेंट डिक्‍लेयर नहीं किया। बेसमेंट इन्‍श्‍योरेंस कंपनी के लिए मैटेरियल रिस्‍क होता है। इसके अलावा घर में काई नहीं रहती है आपने इसका उल्‍लेख नहीं किया है। इसके अलावा अपने यह नहीं बताया कि घर में पेइंग गेस्‍ट रह रहे हैं या छोटा ऑफिस चल रहा है। यह चीजें कमर्शियल एक्टिविटी में आती हैं। हाल में मैने एक और दिक्‍कत का सामना किया कि जिसने इन्‍श्‍योरेंस खरीदा उसका घर के इन्‍श्‍योरेंस में इन्‍ट्रेस्‍ट नहीं है। उदाहरण के लिए एक किराएदार बिल्डिंग इन्‍श्‍योरेंस खरीदता है या हाई राइज में फैसिलिटीज मैनेजमेंट कंपनी होम इन्‍श्‍योरेंस खरीदती है जबकि होम होनर खुद होम इन्‍श्‍योरेंस नहीं खरीदता है। घर में चोरी या सेंध लगने के क्‍लेम इसलिए रिजेक्‍ट हो जाते हैं क्‍योंकि होम इन्‍श्‍योरेंस खरीदने वाले ने इन्‍श्‍योरेंस कंपनी को यह नहीं बताया कि घर में अगले कुछ महीनों तक कोई नहीं रहेगा। क्‍लेम रिजेक्‍ट होने का दूसरा सबसे आम कारण है कि इन्‍श्‍योरेंस कंपनी घर में जबरन घुस कर चोरी को कवर करती है लेकिन सामान्‍य चोरी को कवर नहीं करता है। इसके अलावा कई मामलों में क्‍लेम रिपोर्ट नहीं किया जाता है क्‍योंकि चोरी गया सोना अवैध होता है। यानी ओनर ने यह सोना अपनी आय में डिक्‍लेयर नहीं किया है। कई बार प्रीमियम कम रखने के लिए वस्‍तुओं की कीमत कम बताई जाती है इसके आधार पर भी क्‍लेम रिजेक्‍ट हो जाता है।

मरीन इन्‍श्‍योरेंस

मरीन इन्‍श्‍योरेंस इन वस्‍तुओं को कवर करता है जिसे कहीं भेजा जाता है। मरीन इन्‍श्‍योरेंस क्‍लेम इसलिए रिजेक्‍ट हो जाते हैं क्‍योंकि स्‍टैंडर्ड इन्‍श्‍योरेंस एक्‍सीडेंट को कवर करता है जबकि ज्‍यादातर क्‍लेम चोरी या एक्‍सीडेंट के बिना हुए नुकसान की वजह से होते हैं। एक व्‍यक्ति को मैं जानता हूं जो ट्रक में कीमती मूर्ति एक जगह से दूसरी जगह ले जा रहा था। रास्‍ते में मूर्ति टूट गई। लेकिन इन्‍श्‍योरेंस कंपनी ने इस आधार पर क्‍लेम रिजेक्‍ट कर दिया क्‍योंकि एक्‍सीडेंट का कोई सबूत नहीं था।

लायबिलिटी इन्‍श्‍योरेंस

वहीं प्रोफेशनल जैसे डॉक्‍टर, चार्टर्ड अकाउंटेंट और आर्किटेक्‍ट मुकदमें से जुड़ी लापरवाही के कवर के लिए लायबिलिटी इन्‍श्‍योरेंस खरीदते हैं। लायबिलिटी कवर के तहत फाइल किए गए क्‍लेम की संख्‍या बहुत कम है और यह देखना दिलचस्‍प होगा कि आने वाले समय में क्‍लेम का भुगतान कैसे होता है। लायबिलिटी कवर के तहत कांट्रैक्‍ट बेहद कड़े हैं और क्‍लेम रिजेक्‍ट करने की गुंजाइश काफी अधिक है। लायबिलिटी कवर लेते समय प्रपोजल फॉर्म में कारोबार का नेचर और आकार बताना बेहद अहम है।

छोटे कारोबारी कम्‍प्‍यूटर और फोन को हुए नुकसान को कवर करने के लिए इन्‍श्‍योरेंस खरीदते हैं। ये क्‍लेम इसलिए रिजेक्‍ट हो जाते हैं कि इनका कारण लापरवाही होता है। खास कर लैपटाप के नुकसान से जुडे क्‍लेम बडे पैमाने पर रिजेक्‍ट होते हैं। आम तौर पर लैपटाप लापरवाही से इस्‍तेमाल होने के कारण खराब हो जाते हैं, जो कि क्‍लेम के योग्‍य नहीं होता है।

ज्‍यादातर लोग इन्‍श्‍योरेंस खरीदते समय प्रीमियम पर ज्‍यादा ध्‍यान देते हैं। अगर हम इसके बजाए इन्‍श्‍योरेंस प्रोडक्‍ट के फीचर पर फोकस करें तो हम क्‍लेम रिजेक्‍ट होने को रोक सकते हैं। जैसे मेडिकल इन्‍श्‍योरेंस कम वेटिंग पीरियड वाला लें। होम इन्‍श्‍योरेंस लेते समय घर के स्‍ट्रक्‍चर और रखें सामान की सही जानकारी दें। मरीन इन्‍श्‍योरेंस ऐसा हो जो सभी तरह के रिस्‍क को कवर करता न कि सिर्फ एक्‍सीडेंट को। इन सभी फीसर्च से पॉलिसी का प्रीमियम बढ़ जाता है लेकिन इससे आपका क्‍लेम रिजेक्‍ट होने की गुंजाइश काफी कम हो जाएगी।

यहां पर मेरा फोकस रिजेक्‍ट हुए क्‍लेम पर है। इसके अलावा भुगतान किए गए क्‍लेम को लेकर सही जानकारी रखना भी अहम है। उदाहरण के लिए 2015 में बच्‍चे ट्रैम्‍पोलीन पर कूदते हुए घायल हो गए थे। इसकी वजह क्‍लेम फाइल किया गया था। दिल्‍ली में बर्थडे पार्टीज में ट्रैम्‍पोलीन जैसी चीजें सामान्‍य हैं। अब मुझे जानकारी है कि ट्रैम्‍पोलीन पर कूदते हुए बच्‍चे घायल हो सकते हैं जिससे में उनको इससे दूर रख सकता हूं। इससे जुडे दूसरे रिस्‍क पर हम आगे बात करेंगे।

ये लेख पहली बार जनवरी 21, 2016 को पब्लिश हुआ.

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