प्रिय ABC
हर शनिवार, मैं एक ऐसे विषय पर अपना नज़रिया शेयर करता हूं जो निवेशकों को काम का लगेगा. आइए इस बार चुनावी नतीजों के आस-पास मार्केट में आए उतार-चढ़ावों पर एक नज़र डालते हैं...
SIP पर एक ज़बरदस्त सबक़
इस महीने की शुरुआत में, मेरे एक परिचित, जो हाल ही में एक सीनियर सरकारी ओहदे से रिटायर हुए थे, उन्होंने मुझसे अपने रिटायरमेंट के बाद की आमदनी और निवेश प्लान करने के लिए संपर्क किया. कुछ चर्चा के बाद, हमने उन फ़ंड्स की एक लिस्ट बनाई, जिनमें वो SIP शुरू करना चाहते थे. ये संयोग ही था कि हमने 3 जून को उनका निवेश फ़ाइनल किया, जो एग्ज़िट पोल के बाद ट्रेडिंग का पहला दिन था. स्टॉक की क़ीमतें बढ़ रही थीं, लेकिन चूंकि हम लंबी SIP शुरू कर रहे थे, इसलिए हमने मार्केट पर कोई ध्यान नहीं दिया था. हमने उस दिन शाम को ट्रांज़ैक्शन ऑर्डर दिए थे, और मेरे दोस्त को अगले दिन - 4 जून - का NAV मिला. बेशक़, यही वो दिन था जब बाज़ार में गिरावट आई थी.
तब से, शेयरों की क़ीमतें बढ़ गई हैं, और इंडेक्स और ज़्यादातर डाइवर्सिफ़ाइड इक्विटी फ़ंड अब तक के सबसे ऊंचे स्तर पर हैं. मेरे दोस्त ने उस दिन जो निवेश किया था, वो क़रीब 8 प्रतिशत बढ़ा है. लेकिन, असल में ये मायने नहीं रखता. मैं तो कहूंगा कि ये बिल्कुल मायने नहीं रखता. मेरे दोस्त ने जो निवेश किया था, वो 24 महीने की मासिक SIP में सिर्फ़ एक महीने का था. हां, ये सिर्फ़ कुछ हफ़्तों में ठीक-ठाक ऊपर चला गया है, लेकिन मुद्दा ये नहीं है कि ये ऊपर हो गया है; ये SIP की प्रकृति है कि कुछ महीनों में, आपको उछाल मिलता है, और कुछ महीनों में, आपको धक्का लगता है. यानी, आपको पहली स्थिति में कुछ कम यूनिट्स मिलती हैं और दूसरी स्थिति में कुछ ज़्यादा. कुल मिलाकर, ये अच्छी तरह से काम करता है क्योंकि बाज़ार लंबे समय तक बढ़ता है.
मुद्दा ये है कि एक अर्से के दौरान लगातार SIP करने से लागत का औसत हो जाना, निवेश का सही तरीक़ा है, और बाज़ार को टाइम करना (यानी, आगे का अंदाज़ा लगा कर निवेश करना) ज़्यादातर निवेशकों के लिए भरोसे की रणनीति नहीं है. शॉर्ट-टर्म में मार्केट की चाल का अंदाज़ा लगाने का अंत अक्सर मौक़ों के छूट जाने में और निराशा में ही होता है. जो बात असल में मायने रखती है वो है लंबे समय के दौरान निवेश की स्थिरता और अनुशासन बनाए रखना. बाज़ार में उतार-चढ़ाव इक्विटी में निवेश का ज़रूरी हिस्सा है, और जो लोग धीरज रखते हैं और अपने लंबे समय के लक्ष्यों पर ही ध्यान बनाए रखते हैं, उन्हें फ़ायदा मिलने की संभावना ज़्यादा होती है.
मेरे मित्र की ये कहानी एक दूसरे ग्रुप के लोगों से बुल्कुल उलट रही, ये कम समझदार निवेशकों का ग्रुप था. ये वो लोग थे जिन्होंने कम NAV पाने के लिए 4 जून को म्यूचुअल फ़ंड में निवेश की कोशिश की. यही वो दिन था जब सेंसेक्स 9 प्रतिशत नीचे था. जहां इस दिन ज़्यादातर निवेशक मैदान छोड़ भागने में जुटे थे, वहीं कुछ साहसी लोगों ने उस दिन इक्विटी फ़ंड में निवेश करने और कम NAV पाने का फ़ैसला किया. याद रखें, अगर आप किसी दिन के तय किए गए कट-ऑफ़ टाइम से पहले निवेश करते हैं, तो आपको यूनिट्स उस दिन के NAV पर मिलनी चाहिए. लेकिन, इस मशीन में बहुत से पुर्ज़े हैं, जैसे आपकी फ़्रंट-एंड ऐप जिससे आप निवेश करते हैं, बैंक, क्लियरिंग हाउस, रजिस्ट्रार, फ़ंड, वगैरह. अगर निवेशक का पैसा समय पर फ़ंड तक नहीं पहुंचता है, तो निवेशक को उस दिन की NAV पर यूनिट्स नहीं दी जा सकती.
और जैसा कि हुआ, 4 और 5 जून को कई लोग सोशल मीडिया पर इस बात की शिकायत कर रहे थे. उन्होंने दावा किया जा रहा था कि 4 जून को समय पर म्यूचुअल फ़ंड इन्वेस्टमेंट ट्रांज़ैक्शन करने के बावजूद, उन्हें उस दिन की घटी हुई NAV नहीं मिली. इसके बजाय, उन्हें 5 जून की NAV मिली, जो कि ज़्यादातर इक्विटी फ़ंड्स में क़रीब 2 से 3 प्रतिशत बढ़ी हुई थी.
जहां कुछ पंटर म्यूचुअल फ़ंड में ट्रेड करने की अपनी कोशिश में सफल नहीं हुए, वहीं मेरे मित्र जैसे लोगों ने बिना कोशिश किए ही सफलता पा ली, और इसी में फ़ंड निवेश का एक बहुत ही बड़ा सबक़ छिपा है.
सिस्टमैटिक इन्वेस्टिंग की असली ताक़त ये है कि ये बाज़ार में अचानक आने वाले उतार-चढ़ावों का असर कम कर देती है. जहां मेरे मित्र को इस थोड़े से समय में मिलने वाला फ़ायदा एक सुखद बात थी, पर इसका सफल निवेश से ज़्यादा लेना-देना नहीं हैं. इसके बजाय, म्यूचुअल फ़ंड के ज़रिए मायने रखने वाली पूंजी खड़ी करने का सार, नियमित बने रहने और धीरज बनाए रखने के दो सिद्धांतों में छुपा है. कोई भी एक दिन इतना मायने नहीं रखता—लेकिन सभी दिनों का कुल जोड़ आपको अमीर बना देगा.
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